1. बिजौलिया का अन्य नाम :- ऊपरमाळ
2. बिजौलिया ठिकाने का संस्थापक :- अशोक परमार (खानवा युद्ध में राणा सांगा का साथ दिया अतः अनुदान के रूप में प्राप्त जागीर)
3. बिजौलिया ठिकाना :-
- रियासत : मेवाड़
- बिजौलिया ठिकाना मेवाड़ रियासत में प्रथम श्रेणी का ठिकाना था
- ठिकानेदार की गिनती महाराणा के 16 उमराओं में होती थी
4. किसान आन्दोलन की कुल अवधि :- 44 वर्ष ( 1897 ई.- 1941 ई. )
5. समकालीन महाराणा : फतेहसिंह एवं भूपालसिंह
6. समकालीन ठिकानेदार :-
- ठा. कृष्ण सिंह / किशन सिंह (1894 ई.)
- ठा.पृथ्वीसिंह (1906 ई.)
- ठा. केसरसिंह (1914 ई.)
7. समकालीन A.G.G. : हॉलैंड
Note : प्रथम AGG : मिस्टर लोकेट
8. समकालीन मेवाड़ P.A : विल्किंसन
9. मेवाड़ का बंदोबस्त अधिकारी : ट्रेंच
10. प्रमुख जाति : धाकड़ (कुल आबादी का 60 प्रतिशत)
11. प्रमुख सन्देशवाहक :- तुलसी भील (24 घंटे में लगातार 70 मील दौड़ लगाने वाला सन्देशवाहक)
12. बिजौलिया किसान आन्दोलन की योजना तैयार हुई : गिरधरपुरा गाँव में
13. भारत का प्रथम संगठित, अहिंसात्मक एवं असहयोगात्मक कृषक आन्दोलन
14. भारत का सबसे दीर्घ अवधि तक चलने वाला किसान आन्दोलन (44 वर्ष)
15. यह भारत का एक मात्र पंच बोर्ड किसान आन्दोलन था क्योंकि प्रत्येक गाँव में किसान पंचायत की शाखाएँ खोली गई थी जिसके नेतृत्व में इस आन्दोलन को संचालित किया गया था
16. इस किसान आन्दोलन ने राजस्थान में प्रजामंडल आन्दोलनों की भूमिका तैयार की
17. इस किसान आन्दोलन के दौरान माणिक्यलाल वर्मा ने ‘पंछीड़ा’ गीत की रचना
Note : माणिक्यलाल वर्मा की प्रसिद्धि ‘राजस्थान में जनांदोलन का जनक’ के रूप में हैं. राजस्थान के प्रमुख शहीद नानक जी भील (2 अप्रैल, 1923 ई., डाबी हत्याकांड) की स्मृति में ‘अर्जी’ नामक गीत लिखा था.
18. इस किसान आन्दोलन के दौरान पंचायत व स्वयंसेवी संस्थाओं की प्रभावी भूमिका रही
19. बिजौलिया किसान आन्दोलन की राजस्थान के स्वतन्त्रता आन्दोलन को देन :-
- अन्य किसान आन्दोलन का जनकबिजौलिया किसान आन्दोलन ही है
- प्रजामंडल आन्दोलन की नींव बिजौलिया किसान आन्दोलन के दौरान ही पड़ी
- माणिक्यलाल वर्मा एवं रामनारायण चौधरी जैसे स्वतन्त्रता सेनानी उभरे
Note : माणिक्य लाल वर्मा ने विजय सिंह पथिक से प्रभावित होकर ही बिजौलिया किसान आन्दोलन में कूदे थे. एवं इस आन्दोलन के प्रशिक्षण में तप आकर माणिक्यलाल वर्मा ने 24 अप्रैल 1938 ई. को मेवाड़ प्रजामंडल की स्थापना करके मेवाड़ रियासत की प्रजा की राजनीतिक चेतना को जन आन्दोलन का स्वरूप प्रदान किया था.
20. बिजौलिया किसान आन्दोलन की राष्ट्रीय देन :-
- विजय सिंह पथिक
- मोहनदास करमचंद गांधी के सत्याग्रह आन्दोलन से बहुत पहले विजय सिंह पथिक ने बिजौलिया किसान आंदोलन के नाम से किसानों में स्वतंत्रता के प्रति अलख जगाने का काम किया था.
Note : विजय सिंह पथिक को ‘महात्मा’, ‘राष्ट्रीय पथिक’ एवं ‘किसान आन्दोलन के जनक’ के रूप में भी जाना जाता है.
नेतृत्व :–
1. साधू सीताराम दास (1897 – 1915 ई.) : सीताराम दास ने “मित्र मंडल” नामक संगठन बनाकर किसानों में जन जागृति पैदा करने का प्रयास किया.
2. विजयसिंह पथिक (1916 – 1923 ई. )
3. जमनालाल बजाज + हरिभाऊ उपाध्याय (1923-1941 ई.)
सहयोगी :- माणिक्यलाल वर्मा एवं रामनारायण चौधरी
कारण :–
A. भूमि कर कुल उत्पादन का 87 प्रतिशत
B. 84 लाग – बाग़ (भूराजस्व के अतिरिक्त कर)
C. घटती अफीम की खेती
D. युद्ध-कोष का भार किसानों पर
E. बेगार
F. भू –राजस्व निर्धारण बंटाई प्रणाली पर आधारित होना
G. चंवरी कर :– किसान द्वारा अपनी पुत्री के विवाह अवसर पर ठाकुर को अदा किया गया कर (प्रति विवाह 5 रूपये कर)
H. तलवार बन्धाई कर :- नए ठिकानेदार की गद्दीनशीनी के अवसर पर किसानों से वसूला गया उत्तराधिकार कर ( यह कर ठा. पृथ्वीसिंह द्वारा 1906 ई. में लगाया गया)
घटनाक्रम :–
1. आरम्भ :- 1897 ई. गिरधरपुरा नामक गाँव से (गंगाराम धाकड़ किसान के पिता के मृत्युभोज में एकत्रित किसानों ने जगीरदार के शोषण के विरुद्ध महाराणा फतेहसिंह को शिकायत करने के लिए नान जी पटेल तथा ठाकरी पटेल के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल उदयपुर भेजा जहाँ 6 महीने बाद उनकी महाराणा फ़तेहसिंह से मुलाकात हुई. फतेहसिंह ने हामिद हुसैन को जांच के लिए भेजा जिसने किसानों की मांगों को सही बतलाया अतः घबराये बिजौलिया ठिकानेदार ठा. किशनसिंह ने उन्हें निष्कासित कर दिया.)
2. 1903 ई. : ठा. किशनसिंह ने किसानों पर चंवरी कर लगाया
3. 1904 ई. : किसानों के कड़े प्रतिरोध के चलते ठा. किशनसिंह को चंवरी कर वापस लेना पड़ा तथा लाग-बाग़ भी घटाने पड़े
4. 1906 ई. : ठाकुर किशन सिंह की मृत्यु के पश्चात ठाकुर पृथ्वी सिंह नया जागीरदार बना जिसने सभी सुविधाएँ वापिस लेते हुए किसानों पर ‘तलवार बंधाई’ नामक कर थोप दिया गया
5. 1913-14 ई. : साधू सीताराम दास के नेतृत्व में किसानों ने ऊपरमाळ क्षेत्र में खेती न करने का फैसला करते हुए भूमि को अकृषित छोड़ दिया.
6. 1914: ठाकुर पृथ्वी सिंह का अल्पव्यस्क पुत्र सिंह केसर सिंह उत्तराधिकारी बना जिसका शासन कोर्ट्स ऑफ़ वर्ड्स ने सम्हाला
7. 24 जून 1914 :- उदयपुर महकमा ख़ास ने किसानों के साथ उनके लिए सम्मानजनक समझौता
8. 1914-15 : “विद्या प्रचारिणी सभा” (पथिक द्वारा ओछड़ी गाँव में स्थापित) नामक शिक्षण संस्था के वार्षिक जलसे में सीताराम दास ने पथिक को आन्दोलन का नेतृत्व सौपा
9. विजयसिंह पथिक के नेतृत्व में 1916 ई. हरियाली आमवस्या के दिन बिजौलिया किसान पंचायत (ऊपरमाल पंच बोर्ड) की स्थापना करके प्रत्येक गाँव में किसान पंचायत की शाखाएँ खोली गई जिसके तत्वाधान में ही यह आन्दोलन संचालित किया गया इसीलिए इस आन्दोलन को ‘भारत का एक मात्र पंच बोर्ड किसान आन्दोलन’ भी बोला जता है. (मन्ना पटेल ऊपरमाल पंच बोर्ड के अध्यक्ष नियुक्त)
न्यायमूर्ति बिन्दुलाल भट्टाचार्य आयोग :–
- 1919 ई. अप्रैल में गठन
- बि.कि.आंदो. के किसानों की मांगों की जांच हेतु गठन
- आयोग की अनुशंसा पर मेवाड़ रियासत द्वारा सभी बंदी किसानों को रिहा
10. 1930 के बाद आन्दोलन : पथिक के बि.कि. आ. से अलग होने के बाद हताश किसान सही नेतृत्व के अभाव में आन्दोलन की मुख्य दिशा से भटक गए एवं 1930 के बाद आन्दोलन पतन की तरफ बढ़ा एवं अब किसानों का मुख्य उद्देश्य किसी भी कीमत पर अपनी जमीनों का स्वामित्व प्राप्त करना था.
11. 24 नवम्बर 1938 ई. : किसान पंचायत ने फैसला लिया कि यदि उनकी माळ भूमि लौटा दी जाती है तो वे किसी भी राजनितिक गतिविधि में भाग नहीं लेंगे.
12. 1941 ई. : मेवाड़ रियासत प्रधानमन्त्री टी. विजय राघवाचार्य ने डॉ. मेहता एवं प. लक्ष्मीलाल जोशी के परामर्श से किसानों को रियायती दर से माल की भूमि पुनः लौटा दी गई एवं इस प्रकार यह आन्दोलन ‘वन्दे मातरम’ एवं ‘जय हिन्द’ के उद्घोष के साथ समाप्त हो गया.
बेगूँ किसान आन्दोलन
अवधि : 1921 – 1923 ई.
रियासत : मेवाड़ (मेवाड़ रियासत में प्रथम श्रेणी का ठिकाना)
ठिकानेदार : ठा. रावत अनूपसिंह
बहुसंख्यक जाति : धाकड़
मेवाड़ महाराणा : फतेहसिंह
राजस्थान AGG : हॉलैंड
मेवाड़ PA : विल्किंसन
कारण :–
- अत्यधिक लगान दरें
- लगभग 53 लाग – बाग़ एवं बेगार
नेतृत्वकर्ता : रामनारायण चौधरी विजय सिंह पथिक
Note : रामनारायण चौधरी का जन्म 1896 ई. में नीमकाथाना (सीकर) में हुआ. इन्होने जयपुर में अर्जुन लाल सेठी से आजीवन देशसेवा की दीक्षा ली. इनका सार्वजनिक जीवन विविध रंगों से अलंकृत रहा. 1914 से 1916 तक आप क्रन्तिकारी थे. 1916 से 1920 तक वर्धा में रहे. 1920 से 1928 तक आप ‘राजस्थान सेवा संघ अजमेर’ के मंत्री की हैसियत से राजस्थान की रियासती जनता के लिए किसानों के कष्ट को दूर करने के लिए कार्य किया. आपने बिजोलिया , बेगूं, बूंदी तथा शेखावाटी के किसान आन्दोलन का मार्गदर्शन किया. परिणाम स्वरुप मेवाड़, बूंदी, जयपुर आदि रियासतों ने आपको अपने राज्य से निर्वासित कर दिया. 1932 ई. में हरिजन सेवक संघ की राजपूताना शाखा का कार्यभार देखा. 1934 ई. की महात्मा गांधी की दक्षिण भारतीय हरिजन यात्रा के दौरांन रामनारायण चौधरी गांधी के हिंदी सचिव के रूप में उनके साथ रहे. रामनारायण चौधरी ने बींसवी सदी का राजस्थान, आधुनिक राजस्थान का उत्थान, एवं वर्तमान राजस्थान नामक ग्रंथों की रचना की. 1936 ई. में रामनारायण चौधरी ने अजमेर से नवज्योति नामक समाचार पत्र आरम्भ किया जिसे 1941 ई. में रामनारायण चौधरी की मृत्यु के बाद उनके भाई कप्तान साहब दुर्गा प्रसाद चौधरी ने संचालित किया. रामनारायण चौधरी जी ने अपनी पुस्तक ‘वर्तमान राजस्थान’ में निम्न तीन बुजुर्गों को आधुनिक राजस्थान के निर्माता मानते हैं – विजय सिंह पथिक, अर्जुन लाल सेठी (उग्र क्रान्ति के जनक एवं रामानारायण चौधरी के राजनीतिक गुरु) तथा सेठ जमनालाल बजाज
महिलाओं का नेतृत्व : अंजना देवी चौधरी
Note : राजस्थान के स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान गिरफ्तार होने वाली राजस्थान की पहली महिला अंजना देवी चौधरी थी. अंजना देवी चौधरी रामनारायण चौधरी की पत्नी थी. 23 वर्ष की आयु से इन्होने आभूषण त्याग दिए थे एवं आजीवन खादी पहनी. अंजना देवी चौधरी ने बिजौलिया एवं बेंगू किसान आन्दोलन में महिलाओं का नेतृत्व किया. अंजना देवी चौधरी ने महात्मा गांधी के सेवाग्राम आश्रम (वर्धा-महाराष्ट्र) में 3 वर्ष (1939- 1942 ई.) तक रहते हुए सर्वाधिक तेज गति से चरखा कातने का कीर्तिमान स्थापित किया था.
प्रेरणास्त्रोत / निर्देशन : विजय सिंह पथिक
समाचार पत्र जिसने प्रभावी भूमिका निभाई : तरुण राजस्थान
आन्दोलन का स्वरूप एवं प्रकृति : अहिंसक, असहयोगात्मक एवं सत्याग्रह के गांधीवादी सिद्धांतों पर आधारित
बेगूँ किसान आन्दोलन की पृष्ठभूमि :– पडौसी बिजौलिया किसानों के उत्साहित बेगूँ के किसानों में भी जन जागृति आई एवं राजस्थान सेवा संघ के नेताओं माणिक्यलाल वर्मा एवं रामनारायण चौधरी के प्रयत्नों से किसानों ने यहाँ भी स्वयं को मादक पदार्थों के सेवन एवं अस्पृश्यता जैसी सामाजिक बुराई से स्वयं को दूर रखने का संकल्प लिया तथा प्रण किया कि वे सभी स्वदेशी वस्त्रों का ही प्रयोग करेंगे तथा किसान पंचायतों की सदस्यता ग्रहण करके उससके आदेश को सर्वोपरी मान कर कि. पंचायतों के आदेशों का पूर्ण मनोयोग से पालन करेंगे.
मेनाल किसान सभा सक्रिय बेगूँ किसान आन्दोलन का आरंभ :–
1. वर्ष : 1921 ई. में
2. स्थान : भैरुकुंड (मेनाल –भीलवाड़ा)
3. निर्णय :–
- अत्यधिक लाग-बाग़, बेगार एवं उच्च लगान दरों के विरुद्ध संगठित आन्दोलन आरम्भ किया जाएगा
- बिना जमीन के बंदोबस्त कराए कोई किसान ठिकाने को भूमि-कर नहीं देगा
आन्दोलन का केंद्र : रायता गाँव
मंडावरी गाँव अत्याचार :
1. दिवस : 16 मई 1921
2. उपस्थित किसान : 2000
3. जागीदार के घुड़सवारों, लठैतों एवं सिपाहियों के हमले में लगभग 100 किसान घायल
पारसोली समझौता :
1. दिवस : 2 फरवरी, 1922
2. पक्ष : पारसोली जागीर के ठाकुर एवं पारसोली किसानों के मध्य
3. मध्यस्थता : AGG होलैंड
4. निर्णय : किसानों को कई रियायते प्राप्त हुई, जो अच्छी खासी थी. फसलों की उपज पर भू राजस्व ½ भाग से घटाकर 1/3 कर दिया गया. कुछ लागतें कम कर दी गई और कुछ बिलकुल समाप्त कर दी गई.
5. महत्त्व : मेवाड़ राज्य में होने वाला प्रथम ठिकाना-किसान समझौता जिसे हम दमनकारी शक्तियों के विरुद्ध किसानों की पहली सफलता भी मान सकते हैं.
पूर्वी मेवाड़ परिषद् :–
1. स्थापना : 25 फरवरी 1922 ई. को बिजौलिया, बेगूँ और पूर्वी मेवाड़ के गाँवों को मिलाकर
2. उद्देश्य : किसान पंचायतों को मजबूत बनाना
3. पूर्वी मेवाड़ परिषद् का प्रथम सम्मेलन :
A. दिवस : 25 फरवरी 1922
B. स्थान : तिलस्वां गाँव (बूंदी)
C. सभापति : बेगूं पंचायत का सरपंच गोकुल धाकड़
D. कुल उपस्थित किसान : 15,000 (10,000 पुरुष एवं 5,000 स्त्रियाँ)
E. मुख्य वक्ता : रामनारायण चौधरी
F. मुख्य प्रस्ताव :–
i. यह सभा विजय सिंह पथिक के मेवाड़ में प्रवेश के प्रतिबन्ध का विरोध करती है
ii. यह परिषद् राजस्थान सेवा संघ के हरि ब्रह्मचारी, नन्दलाल एवं पारसोली गाँव के अन्य 100 लोगों की जेल पर उन्हें बधाई देती है और विश्वास करती है कि इस प्रकार के बलिदान से ही पीड़ित राजस्थान का उद्धार होगा.
iii. यह परिषद मेवाड़ महाराणा के प्रति राजभक्ति प्रकट करते हुए उनेक अधिकारों में ब्रिटिश हस्तक्षेप का विरोध करती है.
iv. भील पंचायतों में मद्यपान निषेध पर यह पंचायत अपने भील भाइयों को बधाई देती है
v. यह पंचायत पारसोली के सत्याग्रही घीसाजी और बिजौलिया के मोडाजी धाकड़ की चित्तौड़ जेल में हुई मौत को संदेह की दृष्टि से देखती है एवं दरबार से प्रार्थना करते है इस मामले कि शीघ्र एवं स्वतंत्र जाँच करवाए.
Note : विजय सिंह पथिक ने किसान आन्दोलन को सही दिशा-निर्देश प्रदान करने के लिए राजस्थान सेवा संघ के सचिव रामनारायण चौधरी को बेगूँ भेजा. कुआखेड़ा गाँव (भैंसरोड़गढ़ ठिकाना) में किसान सभा के सम्बोधन के दौरान रामनारायण चौधरी को गिरफ्तार करके 6 अगस्त 1922 को जहाजपुर हाकिम की अदालत भेजा जहाँ 21 दिन के कारावास के बाद रामनारायण चौधरी को उदयपुर सिटी मजिस्ट्रेट अदालत में भेज दिया जहाँ उन पर राजद्रोह का मुकदमा चला जिसे बाद में महेंद्रराज सभा ने खारिज कर दिया तथा निर्दोष सिद्ध करते हुए रामनारायण चौधरी को 23 फरवरी 1923 ई. को रिहा कर दिया.
वोलशेविक समझौता :–
1. वर्ष : जून 1922 ई. में
2. स्थान : अजमेर
3. पक्ष : ठा. रावत अनूपसिंह तथा किसानों के मध्य
4. मध्यस्थ : विजय सिंह पथिक
5. नामकरण : इस समझौते को अंग्रेज सरकार तथा मेवाड़ रियासत ने वोलशेविक समझौते का नाम दिया
6. परिणाम : समझौते से रुष्ट मेवाड़ सरकार एवं रेजीडेंट ने इसे नामंजूर करते हुए ठा. रावत अनूपसिंह को उदयपुर में नजरबंद कर दिया एवं किसानों की समस्या हल करने के लिए मेहता मनोहर सिंह को बेगूँ भेजा (20 मार्च 1923 ई.).
मेहता मनोहर सिंह की कार्यवाही :-
जब मनोहर सिंह एवं किसानों के प्रतिनिधि मंडल के बीच कई दौर की वार्ताओं के बाद भी कोई समझौता नहीं हुआ तो अप्रैल, 1923 ई. को मनोहर सिंह ने 6 किसान गिरफ्तार कर लिए – मगनलाल चौरडिया, छगनलाल चौरडिया, दुलीचंद चौरडिया, कूकादास साधु, धूलीलाल ब्राह्मण एवं लक्ष्मीलाल ब्राहमण.
मेवाड़ रियासत एवं ब्रिटिश सरकार नहीं चाहती थी कि राजस्थान सेवा संघ का कोई भी व्यक्ति किसानों का सहयोग करे अतः मेवाड़ सरकार ने बंदोबस्त अधिकारी (सेटलमेंट कमिश्नर) ट्रेंच के नेतृत्व में एक आयोग बेगूँ इस आदेश के साथ भेजा कि ट्रेंच आयोग के सामने किसान किसी भी बाहरी आदमी को अपने प्रतिनिधि के रूप में नहीं भेज सकेंगे. ऐसा इसलिए किया गया कि किसान पंचायत कहीं राजस्थान सेवा संघ अथवा उसके प्रतिनिधि के तौर पर विजयसिंह पथिक अथवा रामनारायण चौधरी से सहायता प्राप्त न कर ले. किसान इसके लिए तैयार नहीं हुए एवं उन्होने आयोग का बहिष्कार कर दिया.
ट्रेंच आयोग :–
1. अवधि : 13 जून – 13 जुलाई 1923 ई.
2. ट्रेंच ने ठिकाने पर निर्दयी प्रशासक अमृतलाल को बेंगू का मुंसरिम नियुक्त करके बेंगू में मुंसरमात (Court Of Wards – अर्थात राज्य के सीधे नियन्त्रण में) नियुक्त कर दी.
3. ट्रेंच के बुलावे के बावजूद किसान आयोग के सामने उपस्थित नहीं हुए. क्योंकि किसान लिखित में समझौता चाहते थे जबकि ट्रेंच इसके लिए तैयार नहीं था.
4. ट्रेंच ने शोषणकारी करों एवं लाग-बाग़ जिनसे किसानों को सर्वाधिक समस्या थी को छोड़कर शेष कुछ एक, कम दरों वाली लाग बाग को निरस्त कर दिया एवं भू राजस्व दर को जायज बतलाया तथा अपने निर्णय में पथिक पर किसानों में विरोध कि भावना फैलाने और समानांतर सरकार स्थापित करने का आरोप लगाया.
गोविन्दपुरा ह्त्याकाण्ड :–
1. दिवस : 13 जुलाई 1923 ई.
2. स्थान : गोविन्दपुरा (भीलवाड़ा)
3. गोलीबारी : ट्रेंच, राजसिंह, मुंसरिम अमृतलाल, जागीदार, 3 सूबेदार एवं 190 पैदल सैनिकों सहित प्रातः 5 बजे गोविन्दपुरा गाँव को घेरकर गोलीबारी
4. शहीद : 26 अगस्त, 1923 ई. के तरुण राजस्थान के अंक के अनुसार कुल 11 लोगों की जान गयी जिनमें रूपा (जयनगर निवासी) एवं करपा धाकड़ (अमरपुरा निवासी) प्रमुख थे.
Note : ट्रेंच ने गोविन्दपुरा हत्याकांड के लिए किसानों की उकसावे वाली कार्यवाही एवं हठधर्मिता को जिम्मेदार ठहराते हुए किसान पंचायतों की तुलना रूस की साम्यवादी हिंसक संस्था ‘वोलशेविक सोवियत’ से की कि धाकड़ों ने जाति पर आधारित अदालतें या ‘सोवियतें’ स्थापित कर ली हैं जो जागीरदारों के खिलाफ ‘कोई लगान नहीं’ अभियान चला रही हैं. ये जाति अदलातें सभी लोगों पर विचित्र, बर्बर और वीभत्स प्रकार के और खासकर धाकड़ पंचों से भिन्न विचार रखने वाले अल्पसंख्यकों पर जुर्माना लगाती हैं. जब आयोग ने भू राजस्व वसूल करने के लिए कदम उठाये तो आयोग पर लाठियों और तलवारों से लैस धाकड़ों के झुण्ड ने हमला कर दिया अतः स्वरक्षा में आयोग को बल प्रयोग करना पड़ गया.
बेगूँ किसान आन्दोलन का अंत एवं परिणाम :–
विजयसिंह पथिक की गिरफ्तारी के बाद आन्दोलन का जोश और आत्मा दोनों जाते रहे एवं बेगूँ लाला अमृतलाल ने राजस्व वसूली में पाश्विकता की हदें पार कर दी थी. कुछ समय बाद बेगूँ ठिकाने में भूमि-बन्दोबस्त (लेंड सेटलमेंट) का काम आरम्भ हो जाने पर आन्दोलन पूरी तरह से समाप्त हो गया. 20 मई, 1925 ई. तक 120 गाँवों में भूमि-बन्दोबस्त का काम पूरा हो गया था. नये भू-राजस्व की दरें काफी वाजिब थी. 53 में से 34 लाग-बाग़ और बेगार समाप्त कर दी गई थी. बाकी लाग-बाग़ में भी बहुत कुछ रियायतें दी गई थीं (उदयपुर कॉन्फिडेंशियल रिकॉर्ड, फाइल नं. 121, बस्ता नं. 13, और फ़ाइल नं. 145, बस्ता नं. 15, 1923-24 ई., राजस्थान राजस्व अभिलेख, बीकानेर). इस प्रकार हम यह कह सकते है कि बिजौलिया किसान आन्दोलन की तुलना में बेगूँ किसान आन्दोलन अपेक्षाकृत अधिक सफलता के साथ समाप्त हुआ.