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बैराठ सभ्यता Bairath Civilization
स्थति :- जयपुर
नदी :- बाणगंगा
सर्वेक्षण / खोज :- 1871-72 ई. में डॉ. कार्लाइल द्वारा
उत्खनन :–
- डॉ.दयाराम साहनी(1936) – बीजक पहाड़ी
- 1962 ई. एन. आर. बनर्जी
अवधि :- प्रागैतिहासिक काल से लेकर प्रथम शताब्दी ईसवी तक
प्रसिद्धि :– “आदिम चित्रशाला / प्रागैतिहासिक चित्रशाला”
नामकरण : राजा विराट के नाम पर विराटनगर नाम पड़ा
विशेषताएँ :–
1. 1,50,000 – 4000 ई.पू. की अवधि के मध्य के प्रागैतिहासिक शैल चित्र मुख्यतया कछुआनुमा गुफा से प्राप्त होने के कारण ही सभ्यता स्थल को आदिम चित्रशाला (प्रागैतिहासिक चित्रशाला) बोला गया.
2. बैराठ से मौर्यकालीन पुरातत्विक महत्त्व की वस्तुएँ सर्वाधिक संख्या में प्राप्त हुई हैं.
3. महाभारत कालीन केंद्र जहाँ पर राजा विराट ने पांडवों को शरण दी थी. इसी दौरान भीम ने यहाँ भीमजी की डूँगरी पर अपने पैर (लात) से एक तालाब ‘भीमताल’ का निर्माण करवाया था एवं सशस्त्र सेना सहित महाभारत युद्ध में पांडवो के पक्ष में लड़ते हुए अपने पुत्रों उत्तर, श्वेत एवं शंख के साथ मारा गया था. राजा विराट ने अपनी पुत्री उत्तरा का विवाह अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु से किया था जिसके फलस्वरूप परीक्षित का जन्म हुआ था.
Note : राजा विराट की कुल देवी मनसा माता का मंदिर बैराठ के निकट पापड़ी ग्राम में स्थित है.
4. महाभारत में कहा गया है कि शहाज नामक एक राजा ने चेदि तथा मत्स्य दोनों राज्यों पर शासन किया और कालान्तर में यह क्षेत्र विशाल मगध साम्राज्य का अंग बन गया (माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान, अजमेर की कक्षा 10 के लिए पाठयक्रम पुस्तक सामाजिक विज्ञान, अध्याय 1, स्वर्णिम भारत-प्रारंभ से 1206 ई. तक, पृष्ठ 2)
5. बैराठ बौद्ध धर्म की हीनयान शाखा का प्रमुख केंद्र था .
6. यह क्षेत्र मत्स्य महाजनपद का क्षेत्र था. (छठी शताब्दी ई. पू. में 16 महाजनपदों में से एक मत्स्य महाजनपद राजस्थान में स्थित जिसकी राजधानी विराटनगर थी)
7. युवान्च्यांग / व्हेनसांग नामक चीनी यात्री ने अपनी बैराठ यात्रा का वर्णन “पारयात्र” नाम से किया.
Note : प्रसिद्ध चीनी यात्री व्हेनसांग को युवान्च्यांग अथवा श्वान्चांग भी बोला जाता है. यह भारत में सम्राट हर्ष के काल में नालंदा विश्वविद्यालय में महायान बौद्ध धर्म का अध्ययन करने चीन से भारतवर्ष में आया था. व्हेनसांग को ‘तीर्थयात्रियों का राजकुमार’, ‘नीति का पंडित’ एवं ‘वर्तमान शाक्यमुनि’ भी बोला जाता है. बीजक पहाड़ी पर स्थित बौद्ध विहार चीनी यात्री व्हेनसांग ने भी देखा था.
8. प्रसिद्ध इंडो-ग्रीक नरेश मिनांडर की सत्ता का प्रमुख केंद्र.
9. प्रसिद्ध बौद्ध आचार्य नागसेन के ग्रन्थ मिलिंदपन्हो से जानकारी मिलती है कि विराटनगर में ही प्रसिद्ध इंडो ग्रीक नरेश मिनांडर एवं नागसेन के मध्य दार्शनिक वार्तालाप हुआ यहा. जिस पर नागसेन ने पाली भाषा में ‘मिलिंदपन्हो’ नामक पुस्तक लिखी थी.
10. विराटनगर की बौद्ध सभ्यता का विनाशक हूण आक्रमणकारी मिहिरकुल था (दयाराम साहनी के अनुसार).
Note : व्हेनसांग ने अपने वर्णन ‘सि-यु-की’ में लिखा है कि मिहिर कुल ने पश्चिमोत्तर भारत में 1600 स्तूप एवं विहारों को ध्वस्त किया था एवं 9 उच्च कोटि के बुद्ध उपासकों का वध किया था. (बैराठ गणेश्वर आहड़ कालीबंगा)
प्राप्त वस्तुएँ :–
1. प्रमुख पुरातात्त्विक महत्त्व की पहाड़ियाँ –
- .बीजक की पहाड़ी
- भीमजी की डूंगरी
- मोती डूंगरी
2. प्राकृतिक गुफाएँ :–
- तोपनुमा गुफा (कैप्टन बर्ट द्वारा खोजी गई),
- कछुआनुमा गुफा,
- गणेश गिरी गुफा
3. प्रमुख मन्दिर :–
- तोपनुमा गुफा के दक्षिण में हनुमान जी का मंदिर
- महादेवा की पहाडी में गणेशगिरी गुफा में गणेश जी का मंदिर. इस मंदिर की प्राकृतिक गणेश जी की मूर्ति के बारे में मान्यता है कि इसे स्वयं राजा विराट द्वारा प्रतिष्ठित करवाया गया था.
- बैराठ नगर के मध्य में स्थित 64 खम्बों युक्त श्री केश्वराय मंदिर जिसमें 3 कृष्ण एवं 3 विष्णु प्रतिमाएं स्थित हैं. जिनके बारे में यह मान्यता है कि भगवान केशव का जो वर्णन महाभारत में मिलता है ठीक वैसी ही यह मूर्तियाँ हैं. इस मन्दिर में देवी की कोई प्रतिमा नहीं है.
4. पाषाण कालीन प्रस्तर कुल्हाड़ी, प्रस्तर चाकू, दुधारी प्रस्तर उपकरण
5. प्रमुख गुफा चित्र – स्वास्तिक, हिरण, भालू, हाथी, चीता, शुतुरमुर्ग, गतिमान जंगली सांड
Note : नोह (भरतपुर) से स्वास्तिक चिन्ह अंकित मृद्पात्र प्राप्त.
6. ढीगरिया से प्रागैतिहासिक कालीन प्रस्तर से शस्त्र निर्माण का कारखाना प्राप्त
7. महाभारत कालीन 58 ताम्र वस्तुएँ (प्राप्तकर्ता – आर.सी.अग्रवाल) : बाणाग्र, मछली पकड़ने के काँटे, भाले, बरछे, चूड़ियाँ, कुल्हाड़ियाँ, प्याले
Note : बैराठ के उत्खनन से हम कुल 5000 ताम्र उपकरण पाते हैं. (राजस्थान का इतिहास, जयपुर पब्लिशिंग हाउस, शर्मा – पावा, 2005, अध्याय तीसरा, राजस्थान की पुरातन सभ्यताएँ-कालीबंगा एवं आहड़, पृष्ठ 66)
8.ईंटों से निर्मित (मिट्टी से निर्मित पक्की ईंटों का प्रयोग) भवनों के खंडहर
9. मौर्य सम्राट अशोक के निम्न दो शिलालेख प्राप्त –
- बीजक पहाड़ी पर कैप्टन बर्ट को अशोक का सबसे बड़ा शिलालेख भाब्रू शिलालेख प्राप्त (1837 ई. में). बैराठ-कलकत्ता नाम से विख्यात भाब्रू शिलालेख वर्तमान में एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ बंगाल, कलकता संग्रहालय में सुरक्षित है.
- कार्लाइल द्वारा दूसरा शिलालेख भीमसेन की पहाड़ी पर खोजा गया
10. अशोक के स्तम्भ अवशेषों से सिंह आकृति युक्त पाषाण खंड
11. सूती वस्त्र में लिपटी एवं मृद्भांड में रखी 36 मुद्राएँ जिनमें 8 चांदी की आहत जबकि शेष 28 इंडो-ग्रीक वंश की मुद्राएँ हैं. इन 28 इंडो-ग्रीक मुद्राओं में से 16 मुद्राएँ प्रसिद्ध इंडो-ग्रीक नरेश मिनांडर नरेश की हैं जो इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि बैराठ प्रसिद्ध इंडो-ग्रीक नरेश मिनांडर की सत्ता का प्रमुख केंद्र था.
12. प्रसिद्ध मौर्य सम्राट अशोक के काल का निर्मित गोल बौद्ध मंदिर प्राप्त जिसकी खुदाई (जयपुर नरेश सवाई रामसिंह द्वितीय के काल में हुई थी) से एक बुद्ध प्रतिमा युक्त स्वर्ण मंजूषा प्राप्त (राजस्थान का इतिहास, जयपुर पब्लिशिंग हाउस, शर्मा – पावा, 2005, अध्याय तीसरा, राजस्थान की पुरातन सभ्यताएँ-कालीबंगा एवं आहड़, पृष्ठ 69 )
13. ईंटों द्वारा निर्मित मौर्य कालीन दो बौद्ध मठ जिनकी दीवारे 20 इंच चौड़ी हैं.
14. अशोक कालीन काष्ठ स्तम्भ गोल बौद्ध मंदिर से प्राप्त
15. काष्ठ निर्मित मूर्तियाँ
16. सूती वस्त्र का साक्ष्य
17. मिटटी की धूपदानी
18. नाचते पक्षी की मृणमूर्ति
19. मृदभांड अलंकरण में “स्वास्तिक” एवं बौद्ध धर्म के “त्रिरत्न चक्र” के चिन्ह
20. ईंटों के टुकड़ों से शंख लिपि / कूट लिपि/ गुप्त लिपि एवं ब्राह्मी लिपि के साक्ष्य
21. मुग़ल कालीन टकसाल
22. बैराठ का सांस्कृतिक महत्त्व तक्षशिला के समान (बैराठ गणेश्वर आहड़ कालीबंगा)
RBSE REET Level 2 Science Syllabus
गणेश्वर सभ्यता Ganeshwar Civilization
प्राप्ति स्थल : नीमकाथाना – सीकर
नदी : कांतली
खोज : रतन चन्द्र अग्रवाल
उत्खनन : रतन चन्द्र अग्रवाल (1978-88)
अवधि : 2800 ई.पू.
अन्य नाम :–
- “पुरातत्व का पुष्कर”
- “ताम्र युगीन सभ्यताओं की जननी”
विशेषताएँ :–
- राजस्थान की ‘सबसे प्राचीन ताम्रयुगीन सभ्यता’ (इसीलिए गणेश्वर को ताम्र युगीन सभ्यताओं की जननी भी बोला जाता है)
- राजस्थान में ‘सबसे शुद्ध ताम्र उपकरण’ (99 प्रतिशत तक शुद्ध ताम्र उपकरणों) की प्राप्ति
- इससे यह सिद्ध होता है की गणेश्वर के निवासियों को धातु मिश्रण कला का ज्ञान नहीं था क्योंकि प्राप्त ताम्र उपकरणों में किसी अन्य धातु की मिलावट प्राप्त नहीं
- अन्य हड्प्पाई स्थलों को ताम्रोपकरणों की आपूर्ती (इसीलिए गणेश्वर को पुरातत्व का पुष्कर भी बोला जाता है)
- मकान बनाने में पत्थरों का प्रयोग प्राप्त
- काले-नीले रंग के कपीशवर्णी मृद्भांड
- पत्थरों से निर्मित वृहत्ताकार बाँध
प्राप्त ताम्र वस्तुएँ :–
- 400 ताम्र बाणाग्र
- 58 ताम्र कुल्हाड़ियाँ
- 50 मछली पकड़ने के ताम्र कांटे
- तश्तरियां , प्याले , कंगन, सुईयां, भाले , बरछे छेनियाँ आदि (बैराठ गणेश्वर आहड़ कालीबंगा)
RBSE REET Level 2 Social Studies Syllabus
आहड़ सभ्यता Aahad Civilization
प्राप्ति स्थल : उदयपुर
नदी : आयड / बेडच (बनास की सहायक नदी)
खोज : अक्षय कीर्ति व्यास (1953)
उत्खनन : रतन चन्द्र अग्रवाल (1956 ई.) एवं एच.डी.सांकलिया (1961 ई.)
आहड़ में उत्खनन का कार्य डेकन कॉलेज-पूना, राजस्थान पुरातत्व विभाग तथा मेलबोर्न यूनिवर्सिटी-ऑस्ट्रेलिया के तत्वाधान में किया गया.
अवधि : 2500 ई.पू.
अन्य नाम :–
- बनास संस्कृति (बनास नदी घाटी क्षेत्र में विकसित)
- धूलकोट
- ताम्रवती नगरी / ताम्बावती नगरी
- आघाट्पुर / आघातदुर्ग
- आटकपुर
विशेषताएँ :–
- राजस्थान की ‘सबसे प्रमुख ताम्रयुगीन सभ्यता’
- राजस्थान में ‘सवार्धिक (मात्रा) ताम्र उपकरणों’ की प्राप्ति (इसीलिए आहड़ को ताम्बावती या ताम्रवती नगरी भी बोला जाता है)
- ताम्बा गलाने की 2 भट्टियाँ प्राप्त (ताम्बा गलने की भट्टी राजसमन्द जिले के पुरातात्विक स्थल गिलुण्ड से भी प्राप्त हुई है)
- ईरान की मेसोपोटामियाई सभ्यता के साथ व्यापारिक सम्बन्ध (ईरानी शैली के हत्थेदार बर्तन एवं आहड़ से प्राप्त मनकों तथा तकली के नीचे के चक्के की बनावट से स्पष्ट हो जाता है कि इनकी बनावट 2000 ई.पू.में तुर्की-ईरान के इसी प्रकार की वस्तुओं से मिलती -जुलती है जो इस बात का स्पष्ट संकेत है कि आह्ड़ सभ्यता किसी न किसी रूप में पश्चिम एवं एशियाई सभ्यताओं के सम्पर्क में थे.
- मकानों की नीवों में पत्थरों के उपयोग के साक्ष्य प्राप्त
- चाक से निर्मित उल्टी तिपाई पद्धति से तपाए गए लाल-भूरे रंग के मृद्भांड
- सूक्ष्म पाषाण उपकरण (Microliths) पूर्णतया अनुपस्थित
प्राप्त वस्तुएँ :–
- 2 ताम्बा गलाने की भट्टियाँ प्राप्त
- 2 टेराकोटा (पकी मिट्टी) निर्मित स्त्री धड़
- 3 सुरमा लगाने की हड्डी से निर्मित सलाईयाँ
- 4 ताम्र कुल्हाड़ियाँ (हत्था लगाने के लिए छिद्र नहीं)
- 5 खाइयों से धातु मल के रूप में लौह साक्ष्य प्राप्त
- 6 ताम्र मुद्राएँ प्राप्त.
- 6 चूल्हे – एक मकान में एक पंक्ति में (सामूहिक परिवार)
- 8 स्तर प्राप्त – मानव बस्तियों के
- 79 लौह उपकरण (घरेलु एवं कृषि उपयोग हेतु)
- 251 मनके- स्फटिक, गोमेद एवं मिट्टी के बने
- चौथे स्तर की बस्ती से एक बर्तन में रखी दो ताम्र कुल्हाड़ियाँ प्राप्त
- मिटटी के बने अन्न्भंडार (जिन्हें वर्तमान में उदयपुर के ग्रामीण क्षेत्र में गोरे / कोठे भी बोला जाता है)
- ईरानी शैली के छोटे हत्थेदार बर्तन
- मिट्टी से निर्मित धूपदानियाँ
- कपडे की छपाई में प्रयुक्त लकड़ी से बने ठप्पे
- सिर खुजलाने का मिटटी से बना उपकरण
- मिटटी का तवा
- पैर साफ़ करने के काम में आने वाला कवेलू
- हड्डी से बना चाकू
- चावल (मृदभांडो से लम्बी देहरादून किस्म के चावल के अवशेष प्राप्त), ज्वार एवं बाजरे के अवशेष
- चमड़े के टुकड़े
- मानव खिलौनों की नाक अत्यंत नुकीली
- तोल हेतु बाट-माप प्राप्त
- प्रस्तर खंड पर स्त्री चरण अंकित
- हड्डी से निर्मित अछिद्रित सुईयां
- चूल्हों पर मानव हथेलियों की छाप
- 33 फीट 10 इंच लम्बा एक द्विखंडित भवन
- मिट्टी से बना हाथी का खिलौना
- टेराकोटा निर्मित वृषभ प्रतिमाएँ जो ‘बनासियन बुल’ कहलाती है
- प्राप्त मृद्भांडों से उच्च स्तरीय कुम्भकारी कला के प्रचलन की जानकरी मिलती है.
- अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार : पशुपालन
Note : आहड़ की अर्थव्यवस्था को मिश्रित अर्थव्यवस्था भी बोला जाता है. क्योंकि निवासी कृषि, पशुपालन एवं आखेट द्वारा अपना भरण पोषण करते थे. (बैराठ गणेश्वर आहड़ कालीबंगा)
REET Previous Year Question Paper
कालीबंगा सभ्यता Kalibanga Civilization
स्थिति : हनुमानगढ़
नदी : घग्घर
अवधि : 2700 ई. पूर्व से 2250 ई.पू.
1.पूर्व हड़प्पाई काल :–
- सभ्यता – ताम्रपाषाणिक ग्रामीण कृषक स्तर
- अवधि – 2700 ई.पू. से 2450 ई.पू.
- प्राप्ति – पश्चिमी टीले के निचले स्तर पर
- पूर्व के टीले KLB से प्राक हडप्पाई कृषक सभ्यता के अवशेष मिले हैं.
- ऋग्वेद में उल्लेख (अनुमानित)– ‘बहुधान्यकटक’ के रूप में
- कपास, चना एवं सरसों की खेती
- विश्व के प्राचीनतम जुते खेत अर्थात हल की लकीरों के निशान
2.हड़प्पा समकालीन :–
- कांस्य युगीन नगरीय हड़प्पा सभ्यता का एक प्रमुख स्थल
- अवधि – 2450 ई.पू. से 2250 ई.पू.
- ख्याति – ‘हड़प्पा सभ्यता की तृतीय राजधानी’
कालीबंगा सम्पूर्ण सभ्यता का एक मात्र स्थल है जहाँ से निम्न विशिष्ट वस्तुएँ प्राप्त –
- सड़कों (कुछ )को पक्की ईंटों से निर्मित
- निम्न पूर्वी टीला भी किलेबंद
- एक मकान का फर्श अलंकृत ईंटों द्वारा निर्मित
3.उत्तर हड़प्पाई काल :–
कालीबंगा के पुरातात्विक महत्त्व की पहचान :–
- डॉ. एल.पी. टेस्सिटोरी द्वारा
- ‘प्राक मौर्यकालीन सभ्यता’ के रूप में
पहली बार कालीबंगा को ढूँढा गया – ऑरेल स्टाइन द्वारा 1942 ई. में
खोज : 1952 ई. में अमलानंद घोष
उत्खनन : 1961 ई. में बी.बी. लाल तथा बी.के. थापर
नामकरण : यहाँ उत्खनन से काले रंग की मिट्टी की चूड़ियाँ प्राप्त हुई एवं हनुमानगढ़ क्षेत्र में चूड़ियाँ को ‘बंगा’ बोला जाता है
अर्थ : काली चूड़ियां
विशेषताएँ :–
- “हडप्पा सभ्यता की तृतीय राजधानी” एवं “हडप्पा सभ्यता की दीनहीन बस्ती”
- कालीबंगा नगर का आकार समचतुर्भुजाकार था.
कालीबंगा एकमात्र हडप्पाई सभ्यता है जहाँ से निम्न वस्तुएँ एवं विशेषताएँ प्राप्त हुई –
- भूकंप के साक्ष्य प्राप्त
- टेराकोटा निर्मित सौर घडी प्राप्त
- लकड़ी की नालियाँ (बांस की बनी)
- दुनियाँ के प्राचीनतम बहु छिद्रित बेलनाकार तंदूर
- दुर्ग (उच्च पश्चिमी टीला) को बीच से एक लम्बी दीवार द्वारा, जो पूर्व-पश्चिम में जाती थी, दो भागों में विभाजित किया गया था. ऐसा द्विविभागीकरण किसी अन्य सैन्धव स्थल में नहीं मिलता
- किलेबंद बस्ती के दोनों टीले दुर्गीकृत (सुरक्षा दीवार से घिरे) है
कालीबंगा से निम्न अन्य प्रमुख वस्तुएँ प्राप्त हुई-
- मिटटी की बैलगाड़ी खिलौना
- दुर्ग अथवा गढ़ी वाले उच्च पश्चिमी टीले के दक्षिणी अर्द्ध भाग में पांच या छः कच्ची ईंटों के चबूतरे बने थे. एक चबूतरें पर कुआँ
- दुर्ग (अथवा गढ़ी वाले उच्च पश्चिमी टीले) के एक भाग में भवनों के नौ क्रमिक स्तरों का पता चलता है. भवनों के आगे पीछे दोनों ओर सड़कें बनी थीं
- अपशिष्ट जल की निकासी के लिए नालियों में एक के ऊपर एक गोलाकार विशाल भांड रखे जाते थे ताकि गंदा पानी इधर-उधर न फैले.
- भवनों की छते मिट्टी एवं बल्लियों की बनाई जाती थी जिन पर चढने के लिए सीढ़ियों लगी होती होती थी.
- पंख फैलाए बगुले की मृणमूर्ति
- कांस्य दर्पण
- आक्रामक मुद्रा में ताम्र वृषभ प्रतिमा
- जुड़वाँ पैरों युक्त वृषभ की मृणमूर्ति जिसके सिर को धड़ से आवश्यकतानुसार अलग किया एवं पुनः जोड़ा जा सकता था
- शंख की चूड़ियाँ
- टेराकोटा निर्मित गेंद
- फल काटने का ताम्र चाक़ू
- सुरमा लगाने वाली हड्डी से निर्मित सलाईयाँ
- हाथी दांत से बनी कंघी
- शतरंज एवं चौसर की गोटियाँ
- तौल के बाट
- हत्थेदार बर्तन
- ताम्र-पिन
- सूती वस्त्र लिपटा उस्तरा
- गाय की मुखाकृति वाले प्याले
- सड़क पर दुर्घटना रोकने के लिए उसके दोनों ओर “रक्षा – स्तम्भ” के साक्ष्य
- बेलनाकार मेसोपोटामियाई मुहर
- एक बालक के शव से हाइड्रोसिफेलस रोग एवं ट्रेफिनेशन चिकत्सा पद्धति के साक्ष्य (बालक की खोपड़ी में 6 छिद्र उपस्थित)
- अनाज इकट्ठा करने की खाईयों के साक्ष्य (बैराठ गणेश्वर आहड़ कालीबंगा)