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मारवाड़ किसान आन्दोलन (Marwar Peasant Movement)
कृषकों की सामान्य समस्याओं के प्रति अन्य राज्यों की अपेक्षा मारवाड़ में राजनीतिक जागरण अधिक था. मारवाड़ राजस्थान का सबसे बड़ा राज्य था, जिसके अंतर्गत सम्पूर्ण राजस्थान का 26 प्रतिशत भू-भाग था. इस रियासत में सामन्तवाद अत्यधिक मजबूत था, जैसा कि जोधपुर राज्य का 87 प्रतिशत भाग जागीरों के अंतर्गत था. जागीरों में किसानों की स्थिति जागीरदार की इच्छा पर निर्भर किराएदार से अधिक नहीं थी क्योंकि जोधपुर राज्य के अधिकाँश जागीरदारों को न्यायिक शक्तियाँ प्राप्त थी. मारवाड़ में जन चेतना का इतिहास 1915 से आरम्भ होता है. जब वहाँ मरुधर हितकारिणी सभा नामक प्रथम राजनीतिक संगठन की स्थापना हुई थी. यह संगठन अधिक प्रभावी नहीं हो सका क्योंकि इसकी गतिविधियाँ मुख्य रूप से जोधपुर शहर तक ही सीमित रही, किन्तु फिर भी जन चेतना के मामले में इस संगठन का महत्त्व कम करके नहीं आंका जा सकता क्योंकि एक घोर सामंती राज्य में ऐसा संगठन बनना ही अपने आप में महत्त्वपूर्ण था. सन 1922 में आदिवासी आन्दोलन के साथ मारवाड़ के जन आन्दोलन के क्षेत्र में नया अध्याय आरम्भ हुआ. मारवाड़ के आदिवासियों ने भी मोतीलाल तेजावत द्वारा छेड़े गए एकी आन्दोलन में भाग लिया था. मारवाड़ राज्य के बाली एवं गोडवाड निजामतों के भील एवं गरासियों ने 1922 में समाज सुधार गतिविधियों के साथ-साथ राज्य को राजस्व अदा न करने हेतु आन्दोलन किया. राज्य के अशांत क्षेत्रों में आन्दोलन के दमन सेना नियुक्त की. इन सैनिक प्रयासों से स्थिति नियंत्रण में आ सकी. भील एवं गरासियेएकी आन्दोलन से पृथक हो गए तथा उपयुक्त कर देने को सहमत हो गए. आदिवासी पंचों ने इस आशय का एक इकरारनामा भी किया. इस आन्दोलन (मोतीलाल तेजावत द्वारा संचालित एकी आन्दोलन) को विशेष महत्त्व दिया जाता है क्योंकि समाज का एक शोषित हिस्सा पहली बार राज्य शक्ति के साथ सीधे संघर्ष में उतरा था. इस आन्दोलन ने जोधपुर राज्य के किसानों में राज्य के विरुद्ध लड़ने का विचार उत्पन्न किया अतः एकी आन्दोलन को सामंतवाद के विरुद्ध संघर्ष का अगुआ आन्दोलन भी बोला जाता है, जिसने जोधपुर राज्य में दासता से मुक्ति की ज्योति जलाई.
अवधि : 1920-47
रियासत : जोधपुर
कारण :- 1. जागीरी क्षेत्रों में अत्यधिक भूमिकर 2. लाग-बाग़ 3. गरीब किसानों तथा जनता का गैर कानूनी तरीके से होने वाले शोषण
नेतृत्वकर्ता :-
- “मारवाड़ लोक परिषद्” तथा “मारवाड़ हितकारिणी सभा” के नेतृत्व में जयनारायण व्यास तथा चांदमल सुराणा द्वारा की गई. इन संगठनों द्वारा “मारवाड़ की दशा” एवं “पोपा बाई की पोल” नामक पर्चों के वितरण से किसानों के मध्य जन जागृति पैदा की गई.
- 16 मई 1938 ई. को रणछोड़ दास गट्टाणी के नेतृत्व में गठित मारवाड़ लोक परिषद् की महत्त्वपूर्ण भूमिका
Note : मारवाड़ में जन चेतना का प्रारम्भ 1915 ई. में गठित “मरुधर हितकारिणी सभा” से माना जाता है जिसे 1917 ई. में “मारवाड़ हितकारिणी सभा” के नाम से जाना गया. प्रसिद्ध इतिहासकार गोपीनाथ शर्मा के अनुसार “मारवाड़ हितकारिणी सभा” की स्थापना लोकोपकारी कार्यों को लेकर 1923 ई. में की गई.
पृष्ठभूमि :- मारवाड़ के आदिवासियों ने मोतीलाल तेजावत द्वारा शुरू एकी आन्दोलन में भाग लिया था. 1924 ई. में मारवाड़ हितकारिणी सभा ने जयनारायण व्यास के नेतृत्व में पशु निर्यात नीति को रद्द करने हेतु आन्दोलन चलाया था. 1924 ई. में ही राज्य के समर्थन से राजभक्त देश हितकारिणी सभा स्थापित की गई जिसका उद्देश्य मारवाड़ हितकारिणी सभा के कार्यक्रमों का विरोध करना था.
तौल आन्दोलन :- 1. 1920 ई. को आरम्भ
2. इसी आन्दोलन के माध्यम से यहाँ किसान आंदोलन का सूत्रपात हुआ
3. 100 तोले के एक सेर को घटाकर 80 तोले का कर दिया गया जिसके विरोध में सरकार को झुकना पड़ा
26 जनवरी 1932 ई. :
1. जोधपुर रियासत में पहली बार स्वाधीनता दिवस मनाया गया.
Note : ब्रिटिश भारत में प्रथम स्वाधीनता दिवस का आयोजन कांग्रेस के ऐतिहासिक लाहौर अधिवेशन की देन है. पंडित जवाहरलाल नेहरु की अध्यक्षता में यह अधिवेशन रावी नदी के तट पर दिसम्बर 1931 ई. में आयोजित हुआ.इसी अधिवेशन में पारित एक प्रस्ताव ने पूर्ण स्वराज को कांग्रेस का उद्देश्य घोषित किया. इसमें 31 दिसम्बर 1931 ई. को स्वाधीनता का नया – नया स्वीकृत तिरंगा झंडा लहराया गया. रावी के तट पर उपस्थित अपार जनसमूह को प. ज. नेहरू ने शपथ दिलाई कि – “ब्रिटिश शासन की अधीनता अब और आगे स्वीकार करना मानवता तथा ईश्वर के प्रति अपराध होगा.” एवं 26 जनवरी 1930 ई. को पहला स्वाधीनता दिवस घोषित किया गया.
2. छगनराज चौपासनीवाला ने इस अवसर पर जोधपुर में जूनी धान मंडी में तिरंगा फहराया
1938-39 ई. :- 1938-39 ई. में जोधपुर में भयंकर अकाल पड़ा. फरवरी 1939 में जयनारायण व्यास के जोधपुर प्रवेश पर लगे प्रतिबन्ध को हटा दिया गया. मारवाड़ लोक परिषद ने राज्य की अकाल नीति, जागीरदारों द्वारा किये जा रहे जुल्मों, अत्यधिक भूराजस्व एवं लाग बाग़ तथा द्वितीय विश्व युद्ध में जोधपुर नरेश द्वारा ब्रिटिश सहायतार्थ रियासत के समस्त मानवीय एवं सामरिक संसाधन मुहैया कराने के विरोध में एक शक्तिशाली आन्दोलन आरम्भ किया गया.
28 मार्च 1940 ई. :- मारवाड़ लोक परिषद गैर कानूनी घोषित
जून 1940 :- मारवाड़ लोक परिषद पर लगा प्रतिबंध समाप्त
चंद्रावल (चंडावल ) घटना :-
- स्थान : सोजत (पाली)
- दिवस : 28 मार्च 1942 ई.
- कार्यकर्ता मांगीलाल द्वारा “उत्तरदायी शासन दिवस” का आयोजन
- सोजत परगने के जागीरदार के हमले में मारवाड़ लोक परिषद् के 25 कार्यकर्ता घायल
- 28 मार्च 1942 ई. को निमाज, गूंदोज, रोडू एवं धामली ठिकानों में भी चंडावल के समान घटनाएँ घटित हुई.
मारवाड़ किसान सभा :–
- स्थापना : 1941 ई.
- मारवाड़ रियासत द्वारा समर्थित
- अध्यक्ष : मंगलसिंह कछावा
डाबरा / डाबड़ा हत्याकांड :-
1. दिवस : 13 मार्च 1947
2. स्थान : डीडवाना (नागौर)
3. मथुरा दास माथुर की अध्यक्षता में मारवाड़ लोक परिषद् एवं मारवाड़ किसान सभा का संयुक्त अधिवेशन
4. जागीरी हमले में 12 किसान शहीद
5. पन्नाराम चौधरी एवं उसके पुत्र मोतीराम चौधरी को मात्र इसलिए गोली मार दी गई क्योंकि उन्होंने मारवाड़ लोक परिषद् के सदस्यों को शरण दी.
6. गिरफ्तार नेताओं को मोलासर के सेठ डूंगरजी के हस्तक्षेप के बाद मुक्त किया गया.
3 मार्च 1948 ई. :– भारत सरकार के दबाव में ज.व्यास को जोधपुर रियासत का प्रधानमन्त्री नियुक्त किया गया
6 अप्रैल 1949 ई :– मारवाड़ टिनेंसी एक्ट पारित करके किसानों को को जमीन का हकदार मान लिया गया.
बरड़ (बूंदी) किसान आन्दोलन (Barad Peasant Movement)
बूंदी में किसानों ने सामान्यतया भूमि लगान का विरोध नहीं किया. उन्होंने लाग-बाग़ बेगार एवं अन्य करों तथा प्रशासनिक भ्रष्टाचार के विरुद्ध अपना विरोध स्वर बुलंद किया था. मेवाड़ के किसानों की तुलना में बूंदी के किसान कम उत्पीड़ित थे. बूंदी के बरड़ किसान आन्दोलन की एक विशेषता यह थी कि इसमें स्त्रियों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. राजकीय दमन का उन्होंने डटकर सामना किया था. दोनों ही आंदोलनों में असहयोग एवं अहिंसात्मक पद्धति का प्रयोग किया. राजस्थान सेवा संघ का मेवाड़ किसान आन्दोलन की तुलना में बरड़ किसान आन्दोलन को कम सहयोग रहा एवं बरड़ के गूजरों को तो नेतृत्व का लगभग लगभग भाव ही रहा.
अवधि : 1922-1923 ई. एवं 1936 ई.
रियासत : बूंदी
मूल जाति : गूजर
कारण :–
- ऊँची दरों का लगान
- बेगार
- लगभग 25 लाग-बाग़
- रिश्वत के रूप में सरकारी भ्रष्टाचार
- लगान एवं लाग बाग़ के वसूली के साथ साथ एक रूपये पर एक आने की दर से स्थायी रूप से युद्ध कोष के नाम से वसूली
- सरकार ने गूजरों के सामाजिक मामलों में हस्तक्षेप करते हुए कानून द्वारा नुक्ता (मृत्यु भोज) प्रथा को गैर कानूनी घोषित कर दिया तथा इसकी अवेहलना करने पर 500 रुपया जुर्माना एवं तीन महीने कारावास का प्रावधान था.
नेतृत्वकर्ता :–
1. प. नयनूराम शर्मा
Note : प. नयनूराम शर्मा थानेदार के पद पर नियुक्त थे जिससे इस्तीफ़ा देकर राजस्थान के स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया तथा 1934 ई. में हाड़ौती प्रजामंडल की स्थापना की एवं बाद में 1939 ई. में कोटा प्रजामंडल की स्थापना की .ये राजस्थान सेवा संघ के भी सदस्य रहे.शिक्षा के प्रसार हेतु आपने हाड़ौती शिक्षा मंडल की स्थापना की.
2. नारायण सिंह, भंवरलाल, हरिभाई किंकर, रामनारायण चौधरी
आन्दोलन का स्वरूप एवं प्रकृति :- गांधीवादी असहयोग एवं अहिंसात्मक पद्धति का प्रयोग
विशेषताएँ :–
- किसान सभाओं में खादी उद्योग को बढ़ावा देने, विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करने, शराबबंदी, राजकीय चारागाह भूमि पर अधिकार करने, लगान, लाग बाग़ एवं जंगलात जैसे करों की अदायगी को रोकने जैसे विषयों पर आम सहमती बनी
- पं. नयनू राम (नैनू राम) शर्मा को 4 वर्ष कारावास
- नवीन राजस्थान एवं तरुण राजस्थान समाचार पत्रों का बूंदी रियासत में प्रवेश निषेध
- किसान अपनी सभाओं में लाठियों से लैस महिलाओं के जत्थों को आगे रखा करते थे सशस्त्र महिला दलों की प्रभावी भूमिका निभाते हुए कई बार कैदियों को मुक्त कराया
- निर्णय किया गया कि अश्लील गीत नहीं गाये जायेंगे
- रणवीर नामक जमींदार ने तीरथ किसान सभा का नेतृत्व किया
- राजस्थान सेवा संघ द्वारा “बूंदी राज्य में स्त्रियों पर अत्याचार” नामक पर्चा जारी किया गया.
डाबी ह्त्याकाण्ड :–
1. दिवस : 2 अप्रैल 1923 ई. में डाबी (बूँदी) में
2. किसान सभा का नेतृत्व : हरला जी गूजर
3. गोली चलने वाला पुलिस अधिकारी : कप्तान इकराम हुसैन
4. प्रमुख शहीद : नानक जी भील एवं देवलाल गूजर
Note : नानक जी भील गाँव –गाँव झंडा लेकर गीत गाकर लोगों में जागृति पैदा किया करता था. 2 अप्रैल 1923 ई. को नानक जी भील सभा में झंडा लहरा रहा था तथा मंच पर चढ कर “अन्याय की फौज” नामक शीर्षक गीत गाने लगा जिसके बोल थे – ‘गाढा रहिज्यो रे मरदाओं, थांको दुःख सभी मिट जाय, गाढा रहिज्यो रे, सभा माईने घुस जावेगी, अन्यायां की फौज, बन्दूक्यां तल्वारयाँ चालसी, तो मत करज्यो सोच, गाढा रहिज्यो रे मरदांओ’
5. नानक जी भील की ख्याति :–
A. राजस्थान का प्रमुख शहीद
Note : जैसलमेर प्रजामंडल के प्रमुख कार्यकर्त्ता सागरमल गोपा को ‘राजस्थान का अमर शहीद’ भी बोला जाता है. सागरमल गोपा की हत्या थानेदार गुमान सिंह जैसलमेर महाराजा महारावल जवाहर सिंह भाटी के इशारे पर 4 अप्रैल 1946 ई. को जैसलमेर जेल में की थी.
B. दक्षिणी राजस्थान के आदिवासियों तथा किसानों का प्रेरणास्त्रोत
6. माणिक्यलाल वर्मा ने नानक जी भील की याद में “अर्ज़ी” नामक गीत लिखा.
Note : राजस्थान के जन आन्दोलन के जनक के रूप में प्रसिद्ध माणिक्यलाल वर्मा ने बिजौलिया किसान आन्दोलन के दौरान पंछीड़ा गीत लिखा था
7. राजस्थान सेवा संघ ने रामनारायण चौधरी को जांच का उत्तरदायित्व सौंपा. जिन्होंने रिश्वत को बूंदी राज्य का सबसे बड़ा अभिशाप बतलाया.
Note : राजनीतिक चेतना उत्पन्न करने की दृष्टि से राजस्थान सेवा संघ की स्थापना 1919 ई, में वर्धा (महाराष्ट्र) में विजय सिंह द्वारा की गई थी. 1920 ई. में इसका कार्यालय अजमेर स्थानांतरित कर दिया गया था. इसकी शाखाएं जयपुर, जोधपुर, कोटा एवं बूंदी में थी.
हूडेश्वर महादेव मंदिर किसान सभा :–
1. स्थान : हिंडोली (बूंदी)
2. दिवस : 5 अक्टूबर 1936 ई.
3. उपस्थित किसान (गूजर-मीणा) : 500
Note : 16000 मीणा : बागावास मीणा सम्मेलन (जयपुर)- 28 अक्टूबर 1946
15000 लोग : पूर्वी मेवाड़ परिषद (10000 पुरुष + 5000 स्त्रियाँ)
10,000 स्त्रियाँ : कटराथल महिला सम्मेलन (सीकर/ जाट / शेखावाटी किसान आन्दोलन ) – 25 अप्रैल 1934 ई. श्रीमति किशोर्ती देवी एवं उत्तमा देवी के नेतृत्व में
बूंदी किसान आन्दोलन का अंत :- सरकार ने चराई करों में कुछ छूट दी और युद्ध ऋण की वसूली में की जाने वाली शक्ति का प्रयोग कम कर दिया. राजनीतिक कैदियों की रिहाई कम कर दी. इस प्रकार यह किसानों के कुछ संतोष परन्तु ज्यादा राहत के साथ समाप्त हो गया.