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लैंगिक संवेदनशीलता क्या है What is sexual sensitivity
“लैंगिक असमानता का तात्पर्य लैंगिक आधार पर महिलाओं के साथ भेदभाव से है. पारंपरागत रूप से समाज में महिलाओं को कमज़ोर वर्ग के रूप में देखा जाता रहा है. वे घर और समाज दोनों जगहों पर शोषण, अपमान और भेद-भाव से पीड़ित होती हैं. महिलाओं के खिलाफ भेदभाव दुनिया में हर जगह प्रचलित है.”
लड़के व लड़कियों की संख्या में अंतर को लैंगिक असमानता कहा जाता है। ज्यादातर ये 1000 की संख्या पर नापा जाता है। जैसे 1000 लड़कों पर कितनी लड़कियां है,अब इसमें जो भी अंतर आता है,उसको ही लैंगिक असमानता कहा जाता है.
विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं की आर्थिक भागीदारी और अवसर, शैक्षिक उपलब्धियों, स्वास्थ्य और जीवन प्रत्याशा तथा राजनीतिक सशक्तीकरण के सूचकांकों के मिले-जुले आकलन में विश्व में भारत का स्थान 87वाँ है। देश के श्रमबल में महिलाओं की घटती भागीदारी और संसद में महिलाओं का अपर्याप्त प्रतिनिधित्व चिंतनीय है।
लिंगानुपात एक अति संवेदनशील सूचक है जो महिलाओं की स्थिति को दर्शाता है। बच्चों में लिंगानुपात निरंतर कम होता जा रहा है। निरंतर कम होते लिंगानुपात के कारण जनसंख्या में असंतुलन पैदा हो होता है जिससे महिलाओं के विरुद्ध अपराध बढ़ने जैसी अनेक सामाजिक समस्याएँ पैदा होती हैं।
ये सभी संकेतक लिंग समानता और मूलभूत अधिकारों के संबंध में महिलाओं की निराशजनक स्थिति के द्योतक हैं। अतः महिलाओं के सशक्तीकरण के लिये सरकार प्रत्येक वर्ष विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों को लागू करती है ताकि इनका लाभ महिलाओं को प्राप्त हो लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि इतने कार्यक्रमों के लागू किये जाने के बाद भी महिलाओं की स्थिति में कोई खास परिवर्तन नज़र नहीं आता।
‘लिंग’ सामाजिक-सांस्कृतिक शब्द हैं, सामाजिक परिभाषा से संबंधित करते हुये समाज में ‘पुरुषों’ और ‘महिलाओं’ के कार्यों और व्यवहारों को परिभाषित करता हैं, जबकि, ‘सेक्स’ शब्द ‘आदमी’ और ‘औरत’ को परिभाषित करता है जो एक जैविक और शारीरिक घटना है। अपने सामाजिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहलुओं में, लिंग पुरुष और महिलाओं के बीच शक्ति के कार्य के संबंध हैं जहाँ पुरुष को महिला से श्रेंष्ठ माना जाता हैं। इस तरह, ‘लिंग’ को मानव निर्मित सिद्धान्त समझना चाहिये, जबकि ‘सेक्स’ मानव की प्राकृतिक या जैविक विशेषता हैं।
लिंग असमानता को सामान्य शब्दों में इस तरह परिभाषित किया जा सकता हैं कि, लैंगिक आधार पर महिलाओं के साथ भेदभाव। समाज में परम्परागत रुप से महिलाओं को कमजोर जाति-वर्ग के रुप में माना जाता हैं.
लैंगिक अनुपात –
1. राष्ट्रीय स्तर पर – 940 लडकियाँ / 1000 लड़के
2. राजस्थान में – 926 लडकियाँ / 1000 लड़के
3. राष्ट्रीय स्तर पर श्रेष्ठ लिंगानुपात : केरल – 1084 लडकियाँ / 1000 लड़के
4. राजस्थान में सर्वाधिक लिंगानुपात – डूँगरपुर में 990 लडकियाँ / 1000 लड़के
5. राजस्थान में सबसे कम लिंगानुपात – धौलपुर में 845 लडकियाँ / 1000 लड़के
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