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शेखावाटी किसान आन्दोलन Shekhawati Peasant Movement
यह आन्दोलन मुख्य रूप से जागीरदारों की स्वेच्छाचारिता और शोषण के विरुद्ध था. जागीरदार अपने क्षेत्र में पूरे स्वतंत्र थे. वे राजस्व के अतिरिक्त अनेक तरह की लाग-बाग़ वसूल करते थे. उनसे समय-समय पर बेगार लेते थे. दूसरे कार्य बिना पैसे के करवाते थे. जब फसल पैदा होती तो जागीरदार के आदमी खलिहान पर जा बैठते, कर एवं लाग-बाग़ के नाम से अधिकांश अनाज उठा ले जाते थे. किसान के पास इतना भी नहीं बचाता था की वह वर्ष भर परिवार का भरण-पोषण करे. इसके अतिरिक्त किसान अनेक दूसरे अत्याचारों से भी पीड़ित थे. वह ठाकुर के सामने खाट पर नहीं बैठ सकता था, उसकी स्त्री सोने-चांदी के गहने नहीं पहन सकती थी, शादी के समय वर घोड़े पर नहीं चढ़ सकता था, नाम के आगे सिंह नहीं लगा सकता था, छोटे नाम से पुकारा जाता था आदि आदि. शेखावाटी के किसानों की बदहालात चरम पर पहुँच चुकी थी. ठिकानेदार और जागीरदार भूराजस्व के अलावा 80 प्रकार के टैक्स वसूल कर किसानों की कमर तोड़ देते थे. जबरदस्ती लादे गए इन करों को लाग-बाग़ की संज्ञा दी गयी थी. लाग-बाग़ में मलवा, खुंटाबंदी, पानचराई, खूट ग्वार का लादा, कड़वी का लादा, कारेड़ का लादा, हलवेठिया, पालड़ा मेख, न्यौता, कारज खर्च, बाईजी का हाथलेवा, कुंवर-कलेवा, लिखिवा की लाग, जाजम खर्च, ढोलबाग, धुंआ बांछ, हरी, हरी का ब्याज, कांसा लाग, नातालाग, मदे की लाग, चड़स की लाग, श्रीजी की लाग, भगवद की लाग, सहने की लाग, पटवारी की लाग, बलाई की लाग, कोटड़ी खर्च, नाई की लाग, धानकी धोबी तथा कोली की लाग आदि उल्लेखनीय हैं. सीकर के ठिकानेदार द्वारा तो एक साल हरिद्वार स्नान का खर्च भी किसानों से वसूला गया था. नई-नई मोटर गाड़ियों तथा घोड़ा गाड़ियों की कीमत तो प्राय: किसानों से ही वसूल की जाती थी. बिजली व मोटरों के रख-रखाव का व्यय भी किसानों से वसूला जाता था. सीकर ठिकानेदार की अनुत्तरदायी और बर्बर अत्याचारी नीति के परिणामस्वरूप कृषकों और जागीरदारों के मध्य परस्पर सम्बन्धों में बड़ी कटुता आ गई. एक आर्थिक समस्या को जागीरदार की जिद और बदले की भावना ने न केवल जटिल बनाया बल्कि इसे सामाजिक वैमनस्यता के लिए उत्तरदायी बनाया. शेखावाटी में किसान आन्दोलन और जनजागरण के बीज गांधीजी ने सन 1921 में बोये. सन् 1921 में गांधीजी का आगमन भिवानी हुआ. इसका समाचार सेठ देवीबक्स सर्राफ को आ चुका था. सेठ देवीबक्स सर्राफ शेखावाटी जनजागरण के अग्रदूत थे. आप शेखावाटी के वैश्यों में प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने ठिकानेदारों के विरुद्ध आवाज उठाई. देवीबक्स सर्राफ ने शेखावाटी के अग्रणी किसान नेताओं को भिवानी जाने के लिए तैयार किया. शेखावाटी के जन-आन्दोलन में आर्यसमाज के भजनोपदेशकों का बड़ा योगदान रहा. मंडावा के आर्यसमाज का सन 1927 में विशाल समारोह हुआ जिसमें युवक हरलाल सिंह झंडा लिए हुए जुलुस के आगे-आगे चल रहे थे. वे सेठ देवीबक्स सर्राफ और चौधरी गोविन्द राम के आर्यसमाज के रंग में रंग गए थे. जागीरदार ने शीघ्र ही अपनी विवशता अनुभव की जब 1938 में उसके जयपुर दरबार से मतभेद हुए और उसे अपनी कृषक
प्रजा के समर्थन की आवश्यकता हुई. वह अकेला दरबार से संघर्ष नहीं कर सकता था. जाट कृषकों ने अपना समर्थन कुछ शर्तों पर देना स्वीकार किया. जयपुर दरबार ने भी कुछ प्रतिबन्ध जो जाटों पर लगाए हुए थे समाप्त कर दिए और भूमि-बन्दोबस्त एक वर्ष के भीतर करवाने की बात कही. जाट-आन्दोलन अब कुछ छोटे-छोटे ठिकानों में चलता रहा यद्यपि मुख्यतः यह समाप्त हो चुका था. इन छोटी जागीरों और ठिकानों में भूमि सम्बन्धी खातेदारी अधिकारों की समस्या 1947 के पश्चात ही हल हुई जब लोकतांत्रिक सरकार स्थापित हुई.
शेखावाटी में संगठित जन संघर्ष की शुरुआत 1921 में स्थापित चिड़ावा सेवा समिति के द्वारा किया गया यद्यपि इस जन चेतना की प्रकृति जागीरी शोषण के विरुद्ध किसान संघर्ष की तो नहीं थी पर हाँ ये शेखावाटी के समस्त जनांदोलन की शुरुआत तो था ही सही.
अवधि : 1922-47
अन्य नाम :–
1. सीकर किसान आन्दोलन
2. जाट किसान आन्दोलन
3. जाट-राजपूत संघर्ष
नेतृत्व :–
1. देशराज चौधरी (भरतपुर का जाट नेता), हरिसिंह बुरड़क, सर छोटू राम, पं. ताडकेश्वर शर्मा, जमनालाल बजाज, गोविन्दराम, नेतराम चौधरी, हरलाल सिंह (हनुमानपुरा), हरलाल सिंह (मंडासी), किशोरी देवी, उत्तमा देवी, दुर्गा देवी शर्मा. मास्टर चन्द्रभान, चौधरी हरिसिंह, करणी राम, रामनारायण चौधरी
Note : ‘रामनारायण चौधरी ने सीकर के अशिक्षित किसानों में इस उद्देश्य से कार्य आरम्भ किया जिससे यहाँ भी बिजौलिया जैसा किसान आन्दोलन खड़ा हो सके’ – AGG
Note : रामनारायण चौधरी का जन्म 1896 ई. में नीमकाथाना (सीकर) में हुआ. इन्होने जयपुर में अर्जुन लाल सेठी से आजीवन देशसेवा की दीक्षा ली. इनका सार्वजनिक जीवन विविध रंगों से अलंकृत रहा. 1914 से 1916 तक आप क्रन्तिकारी थे. 1916 से 1920 तक वर्धा में रहे. 1920 से 1928 तक आप ‘राजस्थान सेवा संघ अजमेर’ के मंत्री की हैसियत से राजस्थान की रियासती जनता के लिए किसानों के कष्ट को दूर करने के लिए कार्य किया. आपने बिजोलिया , बेगूं, बूंदी तथा शेखावाटी के किसान आन्दोलन का मार्गदर्शन किया. परिणाम स्वरुप मेवाड़, बूंदी, जयपुर आदि रियासतों ने आपको अपने राज्य से निर्वासित कर दिया. 1932 ई. में हरिजन सेवक संघ की राजपूताना शाखा का कार्यभार देखा. 1934 ई. की महात्मा गांधी की दक्षिण भारतीय हरिजन यात्रा के दौरांन रामनारायण चौधरी गांधी के हिंदी सचिव के रूप में उनके साथ रहे. रामनारायण चौधरी ने बींसवी सदी का राजस्थान, आधुनिक राजस्थान का उत्थान, एवं वर्तमान राजस्थान नामक ग्रंथों की रचना की. 1936 ई. में रामनारायण चौधरी ने अजमेर से नवज्योति नामक समाचार पत्र आरम्भ किया जिसे 1941 ई. में रामनारायण चौधरी की मृत्यु के बाद उनके भाई कप्तान साहब दुर्गा प्रसाद चौधरी ने संचालित किया. रामनारायण चौधरी जी ने अपनी पुस्तक ‘वर्तमान राजस्थान’ में निम्न तीन बुजुर्गों को आधुनिक राजस्थान के निर्माता मानते हैं – विजय सिंह पथिक, अर्जुन लाल सेठी (उग्र क्रान्ति के जनक एवं रामानारायण चौधरी के राजनीतिक गुरु) तथा सेठ जमनालाल बजाज
Note : करणी राम को रामेश्वर सिंह ने शेखावाटी का गांधी, छोटा गांधी एवं अमर शहीद भी बोला है. उदयपुरवाटी तहसील, जो भौमियो एवं जागीरदारों के शोषण और उत्पीड़न का सर्वाधिक पीड़ित क्षेत्र था, उसे ही पेशे से वकील करणीराम ने अपना कार्यक्षेत्र चुना और किसानों को अपने हक और अधिकार के लिए जागृत करने के लिए लगान के रूप में फसल के छठे हिस्से से अधिक जागीरदारों को नहीं देने के लिए गांवों में चेतावनी स्वरूप जनसंपर्क का अभियान छेड़ा. शेखावाटी के इलाके में आज भी श्री करणीराम जी को लोग छोटे गांधी जी के नाम से पुकारते सुने जाते हैं, वे वास्तव में ही गांधी बापू का छोटा स्वरूप थे। राजस्थान विधान सभा की पूर्व अध्यक्ष श्रीमति सुमित्रा सिंह ने उनके बारे में कहा है कि – जननी जने तो ऐसा जन जैसा करणीराम । नहीं तो तू बाँझ रह काहे गवाये नाम ।।
शेखावाटी जनजागरण के अग्रदूत : सेठ देवीबक्स सर्राफ
सीकर किसान आन्दोलन का प्राण :–
A. ठाकुर देशराज
B. उन्होंने शेखावाटी में जागृति लाने तथा किसानों को मार्गदर्शन देने का बीड़ा उठाया और आन्दोलन को सही दिशा में अहिंसात्मक तरीके से चलाया, यद्यपि जागीरदारों और ठिकानेदारों की और से हर प्रकार के हिंसात्मक तरीके अपनाए गए
C. 1931 ई. में भरतपुर के ठाकुर देशराज ने शेखावाटी के जाटों को अपने समाचार पत्र ‘राजस्थान संदेश’ जिसके वे सम्पादक थे, के माध्यम से जगाने का कार्य किया. अक्टूबर, 1931 ई. में ठाकुर देशराज ने झुंझुनू में शेखावाटी किसान जाट पंचायत की स्थापना की. कुल मिलाकर ने ठाकुर देशराज ने शेखावाटी के जाट किसानों के मध्य जागीरी जुल्मों के विरुद्ध जन चेतना उत्पन्न करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई.
महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले समाचार पत्र :–
1. तरुण राजस्थान (1923 ई.-ब्यावर, शोभाला गुप्ता, जयनारायण व्यास एवं रामनारायण चौधरी )
2. ग्राम (पं. ताड़केश्वर शर्मा)
3. गणेश (पं. ताड़केश्वर शर्मा)
4. डेली हेराल्ड (लन्दन से प्रकाशित)
विशेषता :–
इस आन्दोलन के प्रति ब्रिटिश जनमत तैयार करने के लिए नेताओं ने लन्दन से प्रकाशित समाचार पत्र डेली हेराल्ड में इस आन्दोलन की खबरे प्रकाशित करवाई इसलिए इस आन्दोलन की चर्चा भारत की केन्द्रीय असेम्बली तथा ब्रिटिश हाउस ऑफ़ कॉमन्स में हुई.
ब्रेन ट्रस्ट (वैचारिक सूत्रधार) :–
चूँकि इस आन्दोलन की सम्पूर्ण रूपरेखा तैयार करने का श्रेय पं. ताडकेश्वर को जाता है इसलिए इन्हें जाट किसान आन्दोलन का ब्रेन ट्रस्ट बोला जाता है. पं. ताड़केश्वर ने अपने द्वारा प्रकाशित समाचार पत्रों ग्राम (1929), गणेश (1934) के माध्यम से इस आन्दोलन में जन जाग्रति फैलाई.
आन्दोलन का केंद्र : सीकर
विस्तार : झुंझुनू जिले के पंचपाणे ठिकाने –
- नवलगढ़
- डूंडलोद
- मलसीसर
- मंडावा
- बिसाऊ
कारण :–
1. 1922 में नव नियुक्त सीकर ठाकुर कल्याण सिंह का किसानों के प्रति शोषणकारी रुख जिसके तहत उसने अधिक भू राजस्व वसूली के लिए जरीब (भू सर्वेक्षण हेतु प्रयुक्त उपकरण) को छोटा करवा दिया ताकि बीघों की संख्या बढ़ जाए.
Note : सीकर ठिकाने की कुल आय : 5.50 लाख वार्षिक थी.
2. किसान चाहते थे कि निश्चित लगान लिया जाए, बेगार समाप्त की जाए, बढ़ी हुई लागते समाप्त की जाएँ एवं उनकी स्त्रियों को परेशान नहीं किया जाए.
प्रमुख घटनाएँ :–
1. चिड़ावा सेवा समिति : 1921
2. सांगासी बैठक :
A. वर्ष : 1921ई.
B. स्थान : चिमना राम ने सांगासी गाँव में अपने घर में
C. उपस्थित किसान : चिमनाराम, भूदाराम, हरलाल सिंह, गोविन्दराम, रामसिंह कंवरपुरा, लादूराम किसारी, लालाराम पूनिया आदि सम्मिलित हुए.
D. इस बैठक में निम्न निर्णय लिए गए:
i. बेटे-बेटियों को सामान रूप से शिक्षा दिलाना
ii. रूढ़ियों, पाखंडों, जादू-टोना, अंध विश्वासों का परित्याग करना और मूर्तिपूजा को बंद करना
iii. मृत्युभोज पर रोक लगाना
iv शराब, मांस और तम्बाकू का परित्याग करना
v. पर्दा-पर्था को समाप्त करना
vi. बाल-विवाह एवं दहेज़ बंद करना
vii. फिजूल खर्च एवं धन प्रदर्शन पर रोक लगाना
इस बैठक के बाद भूदाराम में सामाजिक जागरण का एक भूत सवार हो गया था. वे घूम-घूम कर आर्य समाज का प्रचार करने लगे. अप्रकट रूप से ठिकानेदारों के विरुद्ध किसानों को लामबंद भी करने लगे. विद्याधर कुल्हरी ने अपने इस बाबा भूदाराम के लिए लिखा है कि, ‘वह नंगे सर रहता था. हाथ में लोहे का भाला होता. लालाराम पूनिया अंगरक्षक के रूप में साथ रहता था.
3. बगड़ सभा :–
A. 1922
B. ठिकानेदार की सभा न करने की धमकी के बावजूद बगड़ के पठान अमीर खां ने गढ़ में सार्वजनिक सभा करने की अनुमति दी.
C. भूदाराम के साहस के कारण उन्हें ‘राजा’ की पदवी दी गयी
4. ठिकानेदार द्वारा प्रथम अमानुषिक अत्याचार :
मास्टर प्यारेलाल द्वारा सामाजिक कल्याण के लिए चिड़ावा मे स्थापित ‘अमर सेवा समिति’ द्वारा बेगार का विरोध करने पर खेतड़ी के जागीरदार अमरसिंह ने मास्टर प्यारेलाल को घोड़ों के पीछे बांध कर घसीटा और इसी अवस्था में मारते-पीटते 30 मील दूर ले जाकर खेतड़ी जेल में बंद कर दिया. 23 दिनों तक लगातार दी गयी यातनाओं के पश्चात् भारी दबाव के सम्मुख झुककर अमर सिंह ने इन्हें जेल से रिहा किया
Note : मास्टर प्यारेलाल गुप्ता बड़े जीवट और निडर व्यक्ति थे. वे स्वामी सत्यदेव परिव्राजक के उपदेशों से प्रभावित होकर सन 1921 में राज्य-सेवा छोड़कर नैनीताल से शेखावाटी के चिड़ावा कस्बे में आ गए थे. अब यही उनकी कर्मस्थली थी. वे यहाँ हाईस्कूल में अध्यापक बन गए. उन्होंने अमर सेवा समिति नामक संस्था खड़ी की और उसकी आड़ में जनजागृति कार्य करने लगे. इस संस्था के सदस्य अर्धसैनिक बन चके थे. आगे चलकर वास्तविक बात उजागार होने पर मास्टर प्यारेलाल और उनके साथियों पर खेतड़ी के जागीरदार अमरसिंह ने अकथनीय अत्याचार किये. मास्टर प्यारेलाल गुप्ताजी ने झुंझुनू मे रहकर हरिजनोद्धार कार्यक्रम चलाये. मास्टर प्यारेलाल गुप्ता की ख्याति ‘चिड़ावा के गांधी’ के रूप मे थी.
Note : मेवाड़ का गांधी : मोतीलाल तेजावत
राजस्थान का गांधी : गोकुल भाई भट्ट
शेखावाटी का गांधी : अमर शहीद करणीराम
राजा : भूदाराम (सांगासी)
चिड़ावा (झुंझुनू) का गांधी : मास्टर प्यारेलाल गुप्ता
5. अखिल भारतीय जाट महासभा का पुष्कर अधिवेशन :
A. दिवस : Oct 1925
B. अध्यक्ष : भरतपुर जाट महाराजा कृष्ण सिंह
C. आयोजन का सूत्रधार : अजमेर – मेरवाडा के मास्टर भजनलाल बिजारनिया
D. महत्व : इस अवसर पर जाट रियासतों के मंत्री, पंडित मदन मोहन मालवीय, पंजाब के सर छोटूराम व सेठ छज्जू राम भी पुष्कर आये. इस क्षेत्र के जाटों पर इस जलसे का चमत्कारिक प्रभाव पड़ा और उन्होंने अनुभव किया कि वे दीन हीन नहीं हैं. बल्कि एक बहादुर कौम हैं, जिसने ज़माने को कई बार बदला है. भरतपुर की जाट महासभा को देखकर उनमें नई चेतना व जागृति का संचार हुआ और कुछ कर गुजरने की भावना तेज हो गयी. शेखावाटी के हर कौने से जाट इस जलसे में भाग लेने हेतु केसरिया बाना पहनकर पहुंचे, जिनमें चिमनाराम सांगसी, भूदाराम सांगसी, सरदार हरलाल सिंह, चौधरी घासीराम, पृथ्वीसिंह गोठडा , पन्नेसिंह बाटड़, हरीसिंह पलथाना, गोरुसिंह, ईश्वरसिंह, चौधरी गोविन्दराम, पन्ने सिंह देवरोड़, रामसिंह बख्तावरपुरा, चेतराम भामरवासी व भूदाराम सांगसी, मोती राम कोटड़ी आदि प्रमुख थे.
6. जाट सभा –
A. 5 नवम्बर 1925
B. बगड़ (झुंझुनू)
C. अध्यक्ष : रामसिंह कंवरपुरा
D. उपाध्यक्ष : भूदाराम संगासी
E. सचिव : रतनसिंह (रोहतक निवासी जो पिलानी में प्राध्यापक)
7. शेखावाटी में आर्य समाज की स्थापना –
A. 1927 में
B. मंडावा में
C. सेठ देवीबक्स सर्राफ द्वारा
D. मास्टर कालीचरण एवं पंडित खेमराज ने इस जलसे के बाद नारनौल से रींगस तक जाटों में यज्ञोपवित धारण करवाए.
8. आर्य समाज का द्वितीय सम्मेलन :
A. 1929 में
B. मंडावा में
C. सेठ देवीबक्स द्वारा
D. भरतपुर से ठाकुर देशराज और कुंवर रतनसिंह
E. उपस्थिति लोग : 5000
9. शेखावाटी किसान जाट पंचायत :
A. अक्टूबर, 1931 ई. में
B. ठाकुर देशराज द्वारा
C. झुंझुनू में
10. राजस्थान क्षेत्रीय जाट सभा : 1931 ई. में
11. झुंझुनूं जाट महासभा सम्मलेन :
A. बसंत पंचमी गुरुवार, 11 फ़रवरी 1932 ई. को विशाल यज्ञ का आयोजन
B. मुख्य अतिथि : दिल्ली के आनरेरी मजिस्ट्रेट चौधरी रिशाल सिंह राव
C. विशेषताएँ :-
i. मुख्य अतिथि का स्वागत करने के लिए बिड़ला परिवार ने एक सुसज्जित हाथी उपलब्ध कराया. यह समाचार सुना तो ठिकानेदार क्रोधित हो गए. उन्होंने कटाक्ष किया – तो क्या जाट अब हाथियों पर चढ़ेंगे? यह सामंतों के रौब-दौब को खुली चुनोती थी. जागीरदारों ने सरे आम घोषणा की, ‘हाथी को झुंझुनू नहीं पहुँचने दिया जायेगा.’ पिलानी के कच्चे मार्ग से हाथी झुंझुनू पहुँचाना था. रस्ते में पड़ने वाले गाँवों ने हाथी की सुरक्षा का भर लिया. इस क्रम में गाँव खेड़ला, नरहड़ , लाम्बा गोठड़ा, अलीपुर, बगड़ आदि गाँवों के लोग मुस्तैद रहे. हाथी दो दिन में सुरक्षित झुंझुनू पहुँच गया. ठिकाने दारों की हिम्मत नहीं हुई कि रोकें.
ii. जयपुर रियासत के पुलिस इंस्पेक्टर जनरल मि. अफ.ऍस. यंग (F.S.Young) , नाजिम शेखावाटी, पुलिस अधीक्षक झुंझुनू व अन्य अधिकारीगण जुलुस के साथ-साथ चल रहे थे.
iii. विशाल सम्मलेन को संबोधित करते हुए जयपुर रियासत के आई .जी . यंग (F.S.Young) ने कहा – ‘जाट एक बहादुर कौम है. सामन्तों और पुरोहितों के लिए यह असह्य था’
D. प्रमुख निर्णय :-
i. झुंझुनू में विद्यार्थियों के पढ़ने और रहने के लिए छात्रावास का निर्माण.
ii. दूसरा निर्णय जाट जाति का आत्मसम्मान, स्वाभिमान और सामाजिक दर्जा बढ़ाने सम्बंधित था. जागीरदार और पुरोहित किसान को प्रताड़ित करते थे और उनमें हीन भावना भरने के लिए छोटे नाम से पुकारते थे जैसे मालाराम को मालिया. मंच पर ऐलान किया गया कि आज से सभी अपने नाम के आगे ‘सिंह’ लगावेंगे. सिंह उपनाम केवल ठाकुरों की बपौती नहीं है. उसी दिन से पन्ना लाल देवरोड़ बने कुंवर पन्ने सिंह देवारोड़, हनुमानपुरा के हरलाल बने सरदार हरलाल सिंह, गौरीर के नेतराम बने कुंवर नेतराम सिंह गौरीर, घासी राम बने चौधरी घासी राम फौजदार. आगरा के चाहर अपना टाईटल फौजदार लगाते हैं अत: चाहर गोत्र के घासी राम को यह टाईटल दिया गया.
E. महत्त्व :- झुंझुनू का अधिवेशन शेखावाटी के किसानों विशेषकर जाटों के सामाजिक व सांस्कृतिक जीवन में परिवर्तनकारी साबित हुआ. हिम्मत, जोश व स्वाभिमान के साथ उन्हें अपनी जातीय उच्चता का भी भान हुआ. इसी अवसर पर ठाकुर देशराज ने जाट इतिहास लिखने की घोषणा की. पंडितों ने जाटों को यज्ञोपवीत धारण करवाए. समाज के अन्य वर्ग भी उन्हें श्रेष्ठ आर्य तथा क्षत्रिय कौम मानने लगे. इस सम्मलेन ने शेखावाटी ही नहीं जयपुर रियासत व बीकानेर के बड़े इलाकों में भी जाटों की काया पलट दी. उनमें वह रूह फूंक दी जो उनके सहस और कार्यक्षमता को बराबर बढाती रही. इस जलसे में धन की अपील पर लोगों ने कानों की मुर्कियाँ और लड़कियों ने हाथों के कड़े तक उतार दिए थे. यह जलसा शेखावाटी की जागृति का प्रथम सुनहरा प्रभात था. इसने ठिकानेदारों की आँखों के सामने चकाचोंध पैदा करदी. जातीय सुधार के काम बहुत जोरों से होने लगे. (डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: राजस्थान स्वर्ण जयंती प्रकाशन समिति जयपुर के लिए राजस्थान हिंदी ग्रन्थ अकादमी जयपुर द्वारा प्रकाशित ‘राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम के अमर पुरोधा – सरदार हरलाल सिंह’ , 2001 , पृ. 23)
iii. जाटों को संगठित रहने, बालक-बालिकाओं को शिक्षा दिलाने, प्रत्येक बालक को यज्ञोपवीत पहनने पर बल दिया. बाल-विवाह रोकने, चढ़ावे में जेवर की रस्म कम करने, शादी में कम खर्चा करने आदि पर भाषण हुए. जलसे में करीब 1500 जाटों ने जनेऊ धारण करने का काम किया
12. प्रजापति जाट महायज्ञ :–
A. आयोजन : 20 जनवरी – 29 जनवरी 1934 ई.
B. स्थान : सीकर
C. आयोजन समिति के सदस्य : हरी सिंह पलथाना, ईश्वर सिंह भामू, पृथ्वी सिंह गोठडा, गोरु सिंह कटराथल और पन्ने सिंह बाटाड
D. यज्ञ पुरोहित : पंडित जगदेव शास्त्री
E. स्वागत समिति के : मास्टर चन्द्रभान
Note : मास्टर चन्द्रभान ने खादी आश्रम की स्थापना की थी.
F. उद्देश्य : जागीरी शोषण के विरुद्ध जाटों को लामबंद करके उनमें जन जागृति पैदा करना तथा आन्दोलन में तेजी लाना
G. विशेषता एवं महत्त्व :
i. ठाकुर देशराज के सुझाव पर पर यज्ञ का नाम बदलकर सीकर जाट प्रजापति महायज्ञ नाम रखा.
ii. इस यज्ञ के दौरान जाट किसान एवं ठिकाने के मध्य हाथी विवाद हो गया. जाटों ने ठिकाने से अपने महायज्ञ के अध्यक्ष का हाथी पर जुलुस निकलने के लिए हाथी मांगा. ठिकाने ने हाथी देने से इनकार कर दिया क्योंकि यह उस समय की परम्परा एवं ठिकाने की नीति के विरुद्ध था. जाटों ने ठिकानें की मनाही को बड़ी गम्भीरता से लिया एवं हाथी के मुद्दे पर इनके सम्बन्ध ठिकाने से काफी कटु हो गए थे.
iii. मेहमानों के लिए 100 तम्बू व स्थानीय लोगों के लिए 400 झोंपड़ीयां सजाई गयी जो मीलों क्षेत्रफल में फैली हुई थी. द्वारों के नाम महाराजा सूरजमल, वीर जवाहर सिंह व् मुख्य सड़क का नाम कुंवर पन्ने सिंह रोड रखा गया. सीकर में जाटों ने मानो काशीपुरी की रचना कर दी थी. इस यज्ञ में 25 मन घी और 100 मन हवन सामग्री खर्च हुई. दस दिन चले इस यग्य में करीब एक लाख स्त्री-पुरुषों ने भाग लिया. हरयाणा से सर छोटूराम भी आये. जोधपुर, बीकानेर, पटियाला, पंजाब, उत्तर प्रदेश अदि से बहुत से लोग शामिल हुए. इस अवसर पर तलवारें और कटारें बिकने हाई थी जो हाथों हाथ बिक गयी. यज्ञकुण्ड में लगी आहुतियों के धुंए से यज्ञनगर महक रहा था. वेद मन्त्रों के उच्चारण, आचार्यों की दिनचर्या, भजनोपदेशक, व्याख्यानकर्ता व चारों और नंगी तलवारों से सुसज्जित जाट युवकों द्वारा पहरा देना बड़ा ही प्रभावशाली दृश्य पैदा कर रहा था. जयपुर रियासत के पुलिस महानिरीक्षक श्री एस.एफ. यंग (F.S.Young) ने हवाई जहाज से उड़ानें भर कर सारे दृश्य के फोटो एकत्रित किये. यज्ञ में खबर आई कि सीकर के रावराजा ने जिद पकड़ ली है कि जाट मेरे गढ़ के आगे से हाथी पर जुलुस नहीं निकाल सकते. यह सुनते ही यज्ञ-स्थल पर सनसनी फ़ैल गयी. गीजगढ़ से लाये गए हाथी को ठिकाने वालों ने रात में ही गायब करा दिया है, यह सुनकर तो लोग गुस्से से पागल हो उठे. जाटों की जिद के आगे राजा को झुकना पड़ा. मि. यंग के बीच-बचाव से यह तय हुआ कि जुलुस हाथी पर ही निकलेगा और गढ़ के आगे से ही जायेगा हाँ उस पर कोई जाटी प्रतिनिधि नहीं बैठेगा. “वैदिक धर्म की जय” और “जाट जाति की जय” के तुमुलघोष के साथ सीकर शहर में “वेद भगवान” का जुलुस निकला गया. हाथी पर वेद की पुस्तक लिए पंडित खेमराज शर्मा बैठे जिनकी गोद में सरदार हरलालसिंह का छोटा लड़का बैठा था. यज्ञ के दौरान तीन हजार किसान स्त्रिपुरुषों ने यज्ञोपवित धारण किया जो कि किसान संगठन का ‘प्रतीक चिन्ह’ था. कुंवर नेतराम सिंह की पुत्री शीतलकुमारी ने भी यज्ञोपवीत धारण किया. चिमना राम संगासी अपनी वृद्ध पत्नी को सलवार-कुर्ता पहिनाकर यज्ञस्थल लाये थे. सैंकड़ों स्त्रियों ने यज्ञोपवीत धारण किया तथा साड़ी पहनना आरंभ किया. किसान शक्ति का प्रबल ज्वार यज्ञ के समय फूट पड़ा था जिससे सीकर ठिकानेदार पूर्णतया भयभीत हो गया था
iv. महायज्ञ के समय हाथी को भगवा देने तथा हाथी पर बैठकर सभापति का जुलुस न निकालने देने से जाट सीकर रावराजा से नाराज थे.
13. 1933-34 ई. : शेखावाटी के लगभग सभी ठिकानों में किसानों के आन्दोलन एवं उनके विरुद्ध ठिकानेदारों के दमन चक्र आरम्भ हो गए.
14. सीकरवाटी जाट किसान पंचायत :–
A. स्थापना : 1934 ई.
B. मंत्री (सचिव) : देवासिंह बोचल्या
C. महत्त्व : सीकरवाटी जाट किसान पंचायत की स्थापना सीकर ठिकाने के किसान आन्दोलन के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण घटना थी. इस घटना ने सीकर ठिकाने को यह बता दिया था कि सीकर के किसान अब अधिक समय तक शोषण को बर्दाश्त नहीं करेंगे. यह सीकर के किसानों का पहला संगठन था, जिसके झंडे के नीचे वे संगठित रूप से एक हुए थे, जो अभी तक बिखरे हुए थे.
15. मास्टर चंद्रभानसिंह की गिरफ्तारी :–
A. सीकर यज्ञ के सफल आयोजन से अपमानित महसूस कर रहे सीकर राव राजा ने जाटों का मनोबल तोड़ने के लिए मास्टर चंद्रभानसिंह को 10 फ़रवरी 1934 को गिरफ्तार करने के बाद उन पर 177 जे.पी.सी. के अधीन मुक़दमा शुरू कर दिया.
B. मास्टर चन्द्रभान की गिरफ्तारी के विरोध में 200 किसानों का एक दल जयपुर के लिए रवाना हुआ तो उन्हें सीकर व रींगस से रेल में नहीं बैठने दिया गया. तब वे 18 फ़रवरी 1934 को पैदल ही कुंवर रतनसिंह भरतपुर के नेतृत्व में जयपुर के लिए रवाना हुए. [दी नेशनल काल, 25 फ़रवरी, 1934, पृ.8] जयपुर में वे जयपुर सरकार के वाइस प्रेसिडेंट सर जॉन बिचम से मिले और 14 सूत्री मांगें पेश की.
16. विल्स आयोग :–
A. 1934 ई. में गठित
B. उद्देश्य : ठाकुरों द्वारा जाटों पर किए जा रहे सामाजिक अत्याचारों की जाँच करना
Note : रॉबर्ट आयोग – 1857 की क्रांति में कोटा PA मेजर बर्टन की हत्या में कोटा महाराव रामसिंह हाड़ा की भूमिका की जाँच हेतु
मेजर टेलर कमीशन – 1857 की क्रांति में आउआ ठिकाने में पाली में लड़े गए चेलावास युद्ध (काला-गोरा युद्ध) में जोधपुर PA मेजर मोंकमेसन की हत्या में आउवा ठिकानेदार कुशल सिंह चम्पावत की भूमिका की जाँच हेतु,
न्यायमूर्ति बिन्दुलाल भट्टाचार्य आयोग (1919 ई.) – बिजौलिया किसान आन्दोलन के दौरान किसान समस्याओं की जाँच हेतु गठित,
ट्रेंच आयोग (1923 ई.) – बेंगू किसान आन्दोलन के दौरान किसान समस्याओं की जाँच हेतु गठित,
गोपाल स्वरूप पाठक आयोग – ‘राजस्थान के अमर शहीद’ सागरमल गोपा की राजकीय कैद में ह्त्या (4 अप्रैल 1946 ई.) की जाँच हेतु जिसे आयोग ने अपनी जाँच में आत्महत्या पाया.
Note : जाट किसानों पर अत्याचार को राजपूत ठाकुरों द्वारा जाटों पर सामाजिक अत्याचार की संज्ञा दी गई.
C. आयोग ने सीकर ठाकुर के स्वतंत्रता के अधिकारों की अनुचित मांग को और उसके अधिकारों के साक्ष्यों को जाली दस्तावेजों पर आधारित बताकर उसका अपमान किया.
17. कटराथल महिला सम्मेलन :–
A. दिवस : 25 अप्रैल 1934
B. जिला : सीकर
C. कुल उपस्थित महिलाएं : क्षेत्र मे लागू धरा 144 को तोड़ती हुई 10,000 स्त्रियाँ सभा स्थल पर एकत्रित
Note : 500 गूजर-मीणा : हूडेश्वर महादेव मंदिर किसान सभा : 5 अक्टूबर 1936 ई.
15000 लोग : पूर्वी मेवाड़ परिषद (10000 पुरुष + 5000 स्त्रियाँ) – 25 फरवरी 1922
16000 मीणा : बागावास मीणा सम्मेलन (जयपुर)-
28 अक्टूबर (मुक्ति दिवस)1946
D. कारण : सिहोट के ठाकुर मानसिंह ने 200 हथियारबंद आदमियों के साथ सोतिया का बास नामक गाँव पर लगान वसूली के बहाने हमला कर दिया. मारपीट से गाँव में कोहराम मच गया. किसानों व बच्चों को गिरफ्तार कर मारते-पीटते गढ़ में ले गए और वहां कोठरी में बंद कर अनेक प्रकार की अमानुषिक यंत्रणाएं दी व खाने पिने को कुछ नहीं दिया. स्त्रियों द्वारा गाँव में विरोध करने पर ठाकुर के आदमी उन पर टूटपड़े, कपड़े फाड़ दिए और एक स्त्री को नंगा कर दिया. [पिलानिया:सरदार हरलाल सिंह, p.28] डॉ पेमाराम ने ठाकुर देशराज के जन सेवक पृ. 237 -238 में छपे इस गाँव की कानूड़ी देवी उम्र 21 वर्ष, जिसे नंगा किया गया था, का बयान उद्धृत किया है जो रोंगटे खड़े करने वाला है. घरों में घुसकर स्त्रियों के साथ मारपीट की गयी. कई स्त्रियों के तो इतनी चोटें आई कि वे बेहोश हो गईं. सिहोट ठाकुर द्वारा किसान स्त्रियों के साथ इस प्रकार के किये काण्ड से इलाके भर में व्यापक रोष फैला
E. नेतृत्व : किशोरी देवी (सरदार हरलाल सिंह चौधरी की पत्नी) एवं उत्तमा देवी (ठाकुर देशराज की पत्नी)
Note : जाट स्त्रियों ने चौधरी हरलाल सिंह के नेतृत्व से प्रसन्न होकर उन्हें सरदार की उपाधि प्रदान की थी. जबकि सांगासी के भूदाराम चौधरी को आरम्भिक काल मे ‘राजा’ की उपाधि प्रदान की गई थी.
18. हनुमानपुरा अग्नि काण्ड –
A. 16 मई 1934 (अक्षय तृतीया)
B. बलरिया (हीरवा) के ठाकुर कल्याण सिंह ने हनुमानपुरा (दूलड़ों का बास) को जला दिया.
C. आग चौधरी गोविन्द राम के नोहरे में लगाई. मकान नोहरे सहित 23 घर जलकर रख हो गए जिसमें हजारों रुपये का नुकशान हुआ. दो गायें मरी, कई भेड़ें और बकरियां भी जल गयी. (नवयुग 29 मई 1934)
19. जयसिंहपुरा हत्याकांड :–
A. दिवस : 21 जून 1934
B. जिला : झुंझुनू
C. घटना : डूंडलोड ठाकुर हरनाथ सिंह के भाई ईश्वर सिंह ने खेतों में काम कर रहे किसानों के साथ मारपीट की जिसमें 4 जाट किसान मारे गए एवं 15 घायल हुए
D. विशेषता : जयपुर रियासत के इतिहास का यह पहला मुकदमा था जिसमें किसी ठाकुर पर फौजदारी मुकदमा चला एवं ठाकुर ईश्वर सिंह को 1½ वर्ष का कारावास मिला.
E. ठाकुर देशराज के आव्हान पर राज्यव्यापी 21 जुलाई 1934 ई. को जयसिंहपुरा गोलीकांड दिवस का आयोजन
F. रियासत ने किसानों की मांगों का अध्ययन करने के लिए डब्ल्यू. टी. वेब को सीकर भेजा
20. जयपुर रियासत-जाट किसान समझौता :–
A. दिवस : 13 (23) अगस्त 1934 ई.
B. कुंवर रतन सिंह, ठाकुर झम्मन सिंह एडवोकेट एवं मंत्री अखिल भारतीय जाट महासभा, विजयसिंह पथिक आदि के सहयोग से 23 अगस्त 1934 ई. को किसानों व ठिकानेदारों के बीच समझौता हो गया. ठिकाने की और से ए.डब्ल्यू.टी.वेब (A.W.T. Webb), प्रशासक सीकर, दीवान बालाबक्ष रेवेन्यु अफसर, मेजर मलिक मोहम्मद हुसैन खान अफसर इंचार्ज पुलिस आदि तथा किसानों की और से हरीसिंह बुरड़क पलथाना, अध्यक्ष सीकरवाटी जाट पंचायत, गोरुसिंह कटराथल, उपमंत्री जाट किसान पंचायत, पृथ्वी सिंह गोठड़ा, ईश्वरसिंह भैरूपुरा तथा पन्नेसिंह बाटड ने समझौते पर हस्ताक्षर किये. (डॉ पेमाराम, शेखावाटी किसान आन्दोलन का इतिहास, 1990, p.108)
C. किसानों के लिए भारी सफलता – इस समझौते के अनुसार मास्टर चंद्रभानसिंह तथा देवासिंह को रिहा कर दिया गया
D. निर्णय :
i. बहुत सी लागतें समाप्त
ii. लगान में वृद्धि पर रोक
iii. बकाया लगान पर ब्याज समाप्त
iv. बेगार समाप्त
v. सार्वजनिक सेवाओं में जाटों को उचित एवं सम्मानित प्रतिनिधित्व दिया जाएगा
E. महत्त्व : शेखावाटी किसान आन्दोलन में जाट किसानों की प्रथम जीत
Note : बिजौलिया किसान आंदोलन में किसानों की प्रथम विजय : 24 जून 1914
बेगूँ किसान आन्दोलन में किसानों की प्रथम विजय : चंदाखेड़ी के 700 धाकड़ किसानों ने अपने नेता खेमा धाकड़ को जागीरदार की कैद से छुड़वाया.
D. परिणाम : सीकर ठाकुर ने समझौते की शर्ते मानने से इंकार करते हुए लगान में बढ़ोतरी कर दी परिणामस्वरूप जाट पंचायतों ने ठिकाने का सामाजिक बहिष्कार कर दिया. किसानों का दबाव कम कर गया एवं सेकर ठिकानेदार कल्याण सिंह को किसानों के साथ समझौते पर विवश होना पड़ा.
21. खुडी गांव हत्याकांड :–
A. दिवस : 27 मार्च 1935
B. जिला : सीकर
C. घटना : जाट दूल्हे को घोड़ी से उतारकर राजपूतों ने मारपीट की तथा हिंसा में पहले 1 व्यक्ति रतना जाट एवं बाद में पुलिस कार्यवाही में 4 जाट किसान और मारे गए.
D. 27 मार्च 1935 ई. को डब्ल्यू. टी. वेब के लाठीचार्ज में 2 जाट मारे गए एवं 100 जाट घायल हुए.[बीकानेर कोंफिड़ेंसियल रिकोर्ड, फ़ाइल न. 29-सी, रा.रा.ए. बीकानेर, दी सन्डे स्टेट्समेन 31 मार्च 1935]
E. इस घटना पर महात्मा गाँधी ने ‘हरिजन’ में बड़े कड़े शब्दों में अपनी टिपण्णी लिखी-“जयपुर राज्य के अंतर्गत सीकर के ठिकाने में खुड़ी नाम का एक छोटा सा गाँव है. …गत 27 मार्च को राजपूतों की एक टोली ने जाटों की एक बारात को घेर लिया और बेचारे निहत्ते जाटों पर उसने बुरी तरह लाठियां बरसाईं. गुस्ताखी उन बारातियों की यह थी कि उनका दूल्हा घोड़े पर स्वर था. …राजपूतों ने इस लाठीचार्ज के पहले ही एक जाट को क़त्ल कर दिया… आशा करनी चाहिए कि राज्य के अधिकारी इस मामले की पूरी तहकीकात करेंगे और गरीब जाटों को ऐसा उचित संरक्षण देंगे की जिससे वे उन सभी अधिकारों को अमल में ला सकें जो मनुष्य मात्र को प्राप्त हैं.” (ठाकुर देशराज: जाट जन सेवक, पृ.279-280 एवं डॉ पेमाराम : p.116)
F. परिणाम : जाट-राजपूत सम्बन्ध अत्यधिक कटु हो गए. जाट किसानों ने इस घटना से उपजे आक्रोश के अंतर्गत एक करबंदी आन्दोलन आरम्भ कर दिया था. सीकर ठिकाने के 15 गाँवों के किसानों ने एक शपथ ली कि यदि कोई जाट ठिकाने को राजस्व का भुगतान करेगा तो उसे जाति बाहर कर दिया जाएगा. साथ ही किसानों ने राजपूतों एवं उनका समर्थन करने वाली जातियों के सामाजिक बहिष्कार की घोषणा भी की.
22. कूदन हत्याकांड :–
A. दिवस : 25 अप्रैल 1935
B. जिला : सीकर
C. घटना : सीकर ठिकाने की तरफ से डब्ल्यू. टी. वेब पुलिस के साथ राजस्व वसूलने पहुंचा लेकिन जाट किसानों की हिंसा की पुलिस प्रतिक्रिया में 4 जाट मारे गए.
D. धापी दादी प्रकरण : जब डब्ल्यू. टी. वेब किसान प्रतिनिधियों से बात कर रहा था एवं चौधरी पेमाराम महरिया ने किसानों की तरफ से बढ़ा हुआ लगान देने पर हामी भर दी तो उसी स्थान पर अपनी भैंस को पानी पिलाने आई धापी दादी ने गुस्से मे आकर भैंस हांकने वाली कटीली छड़ी चौधरी पेमाराम महरिया के सर पर मारते हुए छड़ी में उलझे पेमाराम के साफे को लहरा-लहरा कर पूछा ‘इन दो चार लोगों को किसने अधिकार दिया कि वे बढ़ा हुआ लगान चुकाने की हामी भरें?’
E. मृतक किसान : गोठड़ा के चेतराम, टीकूराम, तुलछाराम एवं अजीतपुरा गाँव के आशाराम शहीद
23. सीकर किसान आन्दोलन एक राष्ट्रीय प्रश्न :-
सीकर की घटनाओं से सारा देश प्रभावित हुआ. उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर और सहारनपुर जिलों के जाटों ने भी 10 मई से 25 मई 1935 के बीच अपनी अनेक मीटिंगों में सीकर के किसानों पर की गयी अमानुषिक और बर्बरतापूर्ण ज्यादतियों की निंदा की. [जयपुर जुडिसियल रिकोर्ड, फाईल न. 2549 ऑफ़ 1935 , रा.रा.अ. बीकानेर] बंबई के बड़े-बड़े नेता जिनमें नरीमन, जमनादास मेहता और मूलराज करनदास के नाम विशेष उल्लेखनीय थे, पूरा-पूरा दबाव सीकर ठिकाने पर डाला. अमृतलाल सेठ ने अपने प्रसिद्ध गुजराती दैनिक अखबार ‘जन्मभूमि’ द्वारा सीकर के किसानों के पक्ष में धुआंधार प्रचार किया. कलकत्ता, बंबई, दिल्ली और इलाहाबाद के सभी दैनिक पत्रों ने भी सीकर के इन समाचारों को प्रकाशित किया. इसी बीच अखिल भारतीय जाट महासभा के आह्वान पर 26 मई 1935 को भारत भर में जाटों ने सीकर दिवस मनाया.