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समालोचनात्मक चिन्तन का विकास (Development of Critical Thinking) –
संसार में जितने भी कार्य होते है वे सभी अपने आप में एक समस्या के रूप में होते है और किसी भी समस्या का समाधान प्राप्त करने के लिए उस समस्या पर सोचना पड़ता है तथा सोचना, समझना, विचारना, अपने आप में चिन्तन कहलाता है।
- चिन्तन का जन्म समस्या (काम) के समय होता है।
- चिन्तन एक संज्ञानात्मक प्रक्रिया है।
- चिन्तन का आधार प्रत्यक्षीकरण तथा स्मृति है।
चिन्तन की विशेषताएँ (Features of Thinking) –
- मानसिक प्रक्रिया है।
- चिन्तन एक प्रकार का अप्रकट व्यवहार है।
- विशिष्ट गुण है।
- चिन्तन एक मध्यस्थ प्रक्रिया है जो समस्या के समाधान हेतु की जाती है।
- चिन्तन भावी आवश्यकता की पूर्ति के लिए किया गया व्यवहार है।
- चिन्तन एक कौशल है।
- चिन्तन एक वाद-विवाद है।
चिन्तन के चरण/सोपान (Thinking steps / steps) –
- समस्या की उपस्थिति।
- विभिन्न विचारों का आना।
- विचारों का लक्ष्य के साथ समायोजन।
- अन्वीक्षा तथा विभ्रम -समस्या का हल खोजना।
- सक्रियता।
चिन्तन के प्रकार (Types of Thinking) –
- प्रत्यक्षात्मक चितन कल्पनात्मक चिन्तन
- प्रत्ययात्मक चिन्तन तार्किक चिन्तन
- परावर्तित चिन्तन निर्देशित चिन्तन
- अनिर्देशित चिन्तन समालोचनात्मक चिन्तन
समालोचनात्मक चिन्तन (Critical Thinking) –
- समालोचनात्मक चिन्तन को जीवन कौशल शिक्षा के दस कौशलों में एक आवश्यक कौशल माना गया है।
- समालोचनात्मक चिन्तन को विवेचनात्मक चिन्तन भी कहा जाता है।
- समालोचनात्मक चिन्तन एक ऐसी क्षमता है जिससे वस्तुनिष्ठ तरीके से सूचना और अनुभव का विश्लेषण किया जा सकता है।
समालोचनात्मक चिन्तन के विकास को प्रभावित करने वाले कारक –
- सशक्त प्रेरणा – समस्या को सुलझाने की प्रेरणा जितनी सशक्त/सबल होगी उस विषय का चिन्तन करने में मस्तिष्क उतना ही अधिक प्रयत्नशील होगा।
- ध्यान एवं रूचि
- सतर्कता एवं लचीलापन
- बुद्धि का विस्तृत क्षैत्र
- संवेग
- पूर्वाग्रह
REET 2020 Complete Study Material
समालोचनात्मक चिन्तन के विकास के उपाय-
- कक्षा में बालकों को शिक्षक द्वारा नए-नए तथ्यों की जानकारी दी जानी चाहिए जो उनके चिन्तन को उत्तेजित करें।
- शिक्षक द्वारा बालकों को जिज्ञासु बनाना चाहिए।
- बालकों को बाल्यावस्था से ही चिन्तन हेतु प्रेरित किया जाना चाहिए।
- बालकों के चिन्तन की वास्तविकता पर आधारित बनाने के लिए शिक्षकों द्वारा उन्हें वैज्ञानिक तरीके से नए-नए प्रत्ययों की ओर आकर्षित किया जाना चाहिए।
- बालकों के ज्ञान का विस्तार करना चाहिए क्योंकि ज्ञान, चिन्तन का मुख्य स्तम्भ है।
- बालकों को किसी विषय पर उनके विचार व्यक्त करने की पूर्ण स्वतं?ता दी जानी चाहिए।
- बालकों को तर्क, वाद-विवाद, समस्या और चिन्तन शक्ति को प्रयोग करने के अवसर दें।
- शिक्षकों द्वारा बालकों को किसी विषय या पाठ को समझकर तथा सुझ के आधार पर सीखने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। इससे बालक यथार्थवादी चिन्तन की ओर अग्रसर होता है।
पृच्छा/आनुभाविक साक्ष्य –
- पृच्छा से अभिप्राय पूछताछ होता है।
- सबसे पहले इस प्रकार की विचारधारा का उपयोग अमेरिकी भौतिक विज्ञान शास्त्री -सकवाब’ ने किया था। परन्तु इसे अमेरिकी विद्वान रिचर्ड सचमैन ने शिक्षा के क्षैत्र में इसका प्रयोग प्रारम्भ किया।
- प्रतिपादक – रिचर्ड सचमैन (इलिनाॅयस विश्वविद्यालय, अमेरिका)
- इसका प्रतिपादन भौतिक विज्ञान शिक्षण हेतु किया गया।
- उद्देश्य – शिक्षार्थियों द्वारा किये गये खोज, तथ्य संकलन, तर्क व कार्यकारण सम्बन्ध के ज्ञानात्मक कौशलों का विकास करना।
पद – 1. समस्या का चयन
2. समस्या का स्पष्टीकरण
3. समस्या का समाधान हेतु प्रयास
4. सूचनाओं का एकत्रीकरण
5. पूछताछ प्रक्रिया का विश्लेषण
गुण –
- इसके द्वारा व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त होता है।
- जिज्ञासु प्रवृति का विकास
- पूछताछ की प्रवृति का संचार
- वैज्ञानिक अभिवृति का विकास
- मानसिक शक्ति का विकास
- प्रत्येक शैक्षिक परिस्थितियों में उपयोगी।
- सभी विषयों के लिए उपयोगी।
दोष – छोटी कक्षाओं व मन्दबुद्धि के लिए कम उपयोगी।
शिक्षण अधिगम सामग्री एवं सहायक सामग्री –
जब एक शिक्षक शिक्षण कार्य करवाता है तो अपने शिक्षण कार्य को और अधिक रोचक एवं बालकों के अधिगम की माता को बढ़ाने के उद्देश्य से कुछ वस्तुओं का उपयोग करता है जिन्हें शिक्षण सहायक सामग्री कहते है।
शिक्षण सहायक सामग्री वर्गीकरण –
(1) श्रव्य सामग्री-(केवल सुनना)- रेडियो, ग्रामोफोन, टेपरिकाॅर्डर, ट्रांजिस्टर, लिम्पाफोन
(2) दृश्य सामग्री-(केवल देखना)- श्यामपट्ट, चार्ट, माॅडल, सूचना पट्ट, स्लाइड्स, रेखाचित्र, ग्राफ, जादू की लालटेन, पुस्तक, चित्र, मानसिक साखी, चित्र विस्तारक यंत्र आदि।
(3) श्रव्य-दृश्य सामग्री-(सुनना$देखना)- फिल्म, दूरदर्शन, टी.वी., कम्प्यूटर, विडियो, चलचित्र, रंगमंच, कठपुतली आदि।
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