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क्रिया (Verb Notes) :-
क्रिया (Verb) की परिभाषा :-
वाक्य में प्रयुक्त ऐसे शब्द जो किसी कार्य के करने या होने की स्थिति को प्रकट करते है, उसे क्रिया कहते है।
जैसे- पढ़ना, खाना, पीना, जाना इत्यादि।
‘क्रिया’ का अर्थ होता है- करना। प्रत्येक भाषा के वाक्य में क्रिया का बहुत महत्त्व होता है। प्रत्येक वाक्य क्रिया से ही पूरा होता है। क्रिया किसी कार्य के करने या होने को दर्शाती है। क्रिया को करने वाला ‘कर्ता’ कहलाता है।
- अली पुस्तक पढ़ रहा है।
- बाहर बारिश हो रही है।
- बाजार में बम फटा।
- बच्चा पलंग से गिर गया।
उपर्युक्त वाक्यों में अली और बच्चा कर्ता हैं और उनके द्वारा जो कार्य किया जा रहा है या किया गया, वह क्रिया है; जैसे- पढ़ रहा है, गिर गया।
अन्य दो वाक्यों में क्रिया की नहीं गई है, बल्कि स्वतः हुई है। अतः इसमें कोई कर्ता प्रधान नहीं है।
क्रिया की रचना या धातु रूप :-
प्रत्येक क्रिया की रचना किसी न किसी धातु से होती है एवं सही धातु को पहचानने के लिए वाक्य में प्रयुक्त कर्ता के स्थान पर ‘त्’ शब्द का प्रयोग करना चाहिए एवं सम्पूर्ण वाक्य को आज्ञार्थक वाक्य बना देना चाहिए। उस आज्ञार्थक वाक्य में जो क्रियारूप लिखा जाएगा वह धातुरूप ही माना जायेगा। जैसे –
- रमेश जयपुर गया – तु जयपुर जा।
- उसने खाना खा लिया है। – तू खाना खा।
क्रिया के भेद :-
क्रिया का वर्गीकरण तीन आधार पर किया जाता है –
- कर्म के आधार पर
- काल के आधार पर
- प्रयोग/रचना के आधार पर
1. रचना के आधार पर क्रिया के भेद :-
रचना के आधार पर क्रिया के चार भेद होते हैं-
- संयुक्त क्रिया (Compound Verb)
- नामधातु क्रिया(Nominal Verb)
- प्रेरणार्थक क्रिया (Causative Verb)
- पूर्वकालिक क्रिया(Absolutive Verb)
- सामान्य क्रिया (General Verb)
(1) संयुक्त क्रिया (Compound Verb) :-
जो क्रिया दो या दो से अधिक धातुओं के मेल से बनती है, उसे संयुक्त क्रिया कहते हैं।
दूसरे शब्दों में- जब किसी वाक्य में एक से अधिक क्रियाओं का एक साथ प्रयोग कर दिया जाता है तो उन्हें संयुक्त क्रिया कहते हैं। जैसे-
- बच्चा विद्यालय से लौट आया
किशोर रोने लगा
वह घर पहुँच गया।
उपर्युक्त वाक्यों में एक से अधिक क्रियाएँ हैं; जैसे- लौट, आया; रोने, लगा; पहुँच, गया। यहाँ ये सभी क्रियाएँ मिलकर एक ही कार्य पूर्ण कर रही हैं। अतः ये संयुक्त क्रियाएँ हैं।
● इस प्रकार, जिन वाक्यों की एक से अधिक क्रियाएँ मिलकर एक ही कार्य पूर्ण करती हैं, उन्हें संयुक्त क्रिया कहते हैं।
● संयुक्त क्रिया में पहली क्रिया मुख्य क्रिया होती है तथा दूसरी क्रिया रंजक क्रिया।
● रंजक क्रिया मुख्य क्रिया के साथ जुड़कर अर्थ में विशेषता लाती है;
जैसे- माता जी बाजार से आ गई।
इस वाक्य में ‘आ’ मुख्य क्रिया है तथा ‘गई’ रंजक क्रिया। दोनों क्रियाएँ मिलकर संयुक्त क्रिया ‘आना’ का अर्थ दर्शा रही हैं।
● संयुक्त क्रिया की एक विशेषता यह है कि उसकी पहली क्रिया प्रायः प्रधान होती है और दूसरी उसके अर्थ में विशेषता उत्पत्र करती है। जैसे- मैं पढ़ सकता हूँ। इसमें ‘सकना’ क्रिया ‘पढ़ना’ क्रिया के अर्थ में विशेषता उत्पत्र करती है। हिन्दी में संयुक्त क्रियाओं का प्रयोग अधिक होता है।
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संयुक्त क्रिया के भेद :-
अर्थ के अनुसार संयुक्त क्रिया के 11 मुख्य भेद है-
(i) आरम्भबोधक – जिस संयुक्त क्रिया से क्रिया के आरम्भ होने का बोध होता है, उसे ‘आरम्भबोधक संयुक्त क्रिया’ कहते हैं।
जैसे- वह पढ़ने लगा, पानी बरसने लगा, राम खेलने लगा।
(ii) समाप्तिबोधक – जिस संयुक्त क्रिया से मुख्य क्रिया की पूर्णता, व्यापार की समाप्ति का बोध हो, वह ‘समाप्तिबोधक संयुक्त क्रिया’ है।
जैसे- वह खा चुका है; वह पढ़ चुका है। धातु के आगे ‘चुकना’ जोड़ने से समाप्तिबोधक संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं।
(iii) अवकाशबोधक – जिससे क्रिया को निष्पत्र करने के लिए अवकाश का बोध हो, वह ‘अवकाशबोधक संयुक्त क्रिया’ है।
जैसे- वह मुश्किल से सोने पाया; जाने न पाया।
(iv) अनुमतिबोधक – जिससे कार्य करने की अनुमति दिए जाने का बोध हो, वह ‘अनुमतिबोधक संयुक्त क्रिया’ है।
जैसे- मुझे जाने दो; मुझे बोलने दो। यह क्रिया ‘देना’ धातु के योग से बनती है।
(v) नित्यताबोधक – जिससे कार्य की नित्यता, उसके बन्द न होने का भाव प्रकट हो, वह ‘नित्यताबोधक संयुक्त क्रिया’ है।
जैसे- हवा चल रही है; पेड़ बढ़ता गया; तोता पढ़ता रहा। मुख्य क्रिया के आगे ‘जाना’ या ‘रहना’ जोड़ने से नित्यताबोधक संयुक्त क्रिया बनती है।
(vi) आवश्यकताबोधक – जिससे कार्य की आवश्यकता या कर्तव्य का बोध हो, वह ‘आवश्यकताबोधक संयुक्त क्रिया’ है।
जैसे- यह काम मुझे करना पड़ता है; तुम्हें यह काम करना चाहिए। साधारण क्रिया के साथ ‘पड़ना’ ‘होना’ या ‘चाहिए’ क्रियाओं को जोड़ने से आवश्यकताबोधक संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं।
(vii) निश्र्चयबोधक – जिस संयुक्त क्रिया से मुख्य क्रिया के व्यापार की निश्र्चयता का बोध हो, उसे ‘निश्र्चयबोधक संयुक्त क्रिया’ कहते हैं।
जैसे- वह बीच ही में बोल उठा; उसने कहा- मैं मार बैठूँगा, वह गिर पड़ा; अब दे ही डालो। इस प्रकार की क्रियाओं में पूर्णता और नित्यता का भाव वर्तमान है।
(viii) इच्छाबोधक – इससे क्रिया के करने की इच्छा प्रकट होती है।
जैसे- वह घर आना चाहता है; मैं खाना चाहता हूँ। क्रिया के साधारण रूप में ‘चाहना’ क्रिया जोड़ने से इच्छाबोधक संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं।
(ix) अभ्यासबोधक – इससे क्रिया के करने के अभ्यास का बोध होता है। सामान्य भूतकाल की क्रिया में ‘करना’ क्रिया लगाने से अभ्यासबोधक संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं।
जैसे- यह पढ़ा करता है; तुम लिखा करते हो; मैं खेला करता हूँ।
(x) शक्तिबोधक – इससे कार्य करने की शक्ति का बोध होता है।
जैसे- मैं चल सकता हूँ, वह बोल सकता है। इसमें ‘सकना’ क्रिया जोड़ी जाती है।
(xi) पुनरुक्त संयुक्त क्रिया – जब दो समानार्थक अथवा समान ध्वनिवाली क्रियाओं का संयोग होता है, तब उन्हें ‘पुनरुक्त संयुक्त क्रिया’ कहते हैं।
जैसे- वह पढ़ा-लिखा करता है; वह यहाँ प्रायः आया-जाया करता है; पड़ोसियों से बराबर मिलते-जुलते रहो।
(2) नामधातु क्रिया (Nominal Verb)–
संज्ञा अथवा विशेषण के साथ क्रिया जोड़ने से जो संयुक्त क्रिया बनती है, उसे ‘नामधातु क्रिया’ कहते हैं। अथार्त किसी भी क्रिया की रचना किसी न किसी धातु से होती है परंतु जब कोई क्रिया किसी संज्ञा/सर्वनाम/विशेषण शब्दो से बना ली जाती है तो उसे नामधातु क्रिया कहते है।
जैसे- लुटेरों ने जमीन हथिया ली। हमें गरीबों को अपनाना चाहिए।
उपर्युक्त वाक्यों में हथियाना तथा अपनाना क्रियाएँ हैं और ये ‘हाथ’ संज्ञा तथा ‘अपना’ सर्वनाम से बनी हैं। अतः ये नामधातु क्रियाएँ हैं।
संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण तथा अनुकरणवाची शब्दों से निर्मित कुछ नामधातु क्रियाएँ इस प्रकार हैं :
संज्ञा शब्द | नामधातु क्रिया |
शर्म | शर्माना |
लोभ | लुभाना |
बात | बतियाना |
झूठ | झुठलाना |
लात | लतियाना |
दुख | दुखाना |
सर्वनाम शब्द | नामधातु क्रिया |
अपना | अपनाना |
विशेषण शब्द | नामधातु क्रिया |
साठ | सठियाना |
तोतला | तुतलाना |
नरम | नरमाना |
गरम | गरमाना |
लज्जा | लजाना |
लालच | ललचाना |
फ़िल्म | फिल्माना |
अनुकरणवाची शब्द | नामधातु क्रिया |
थप-थप | थपथपाना |
थर-थर | थरथराना |
कँप-कँप | कँपकँपाना |
टन-टन | टनटनाना |
बड़-बड़ | बड़बड़ाना |
खट-खट | खटखटाना |
घर-घर | घरघराना |
(3) प्रेरणार्थक क्रिया (Causative Verb) :-
जब किसी वाक्य में कर्त्ता स्वयं की इच्छा से कार्य नही करके किसी अन्य की प्रेरणा से कार्य करता है तो वह प्रेरणार्थक क्रिया कहलाती है।
जैसे- काटना से कटवाना, करना से कराना।
एक अन्य उदाहरण इस प्रकार है-
मालिक नौकर से कार साफ करवाता है।
अध्यापिका छात्र से पाठ पढ़वाती हैं।
उपर्युक्त वाक्यों में मालिक तथा अध्यापिका प्रेरणा देने वाले कर्ता हैं। नौकर तथा छात्र को प्रेरित किया जा रहा है। अतः उपर्युक्त वाक्यों में करवाता तथा पढ़वाती प्रेरणार्थक क्रियाएँ हैं।
प्रेरणार्थक क्रिया में दो कर्ता होते हैं :
(1) प्रेरक कर्ता – प्रेरणा देने वाला; जैसे- मालिक, अध्यापिका आदि।
(2) प्रेरित कर्ता – प्रेरित होने वाला अर्थात जिसे प्रेरणा दी जा रही है; जैसे- नौकर, छात्र आदि।
प्रेरणार्थक क्रिया के रूप
प्रेरणार्थक क्रिया के दो रूप हैं :
(1) प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया
(2) द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया
प्रेरणार्थक क्रियाओं के कुछ अन्य उदाहरण
मूल क्रिया | प्रथम प्रेरणार्थक | द्वितीय प्रेरणार्थक |
उठना | उठाना | उठवाना |
उड़ना | उड़ाना | उड़वाना |
चलना | चलाना | चलवाना |
देना | दिलाना | दिलवाना |
जीना | जिलाना | जिलवाना |
लिखना | लिखाना | लिखवाना |
जगना | जगाना | जगवाना |
सोना | सुलाना | सुलवाना |
पीना | पिलाना | पिलवाना |
देना | दिलाना | दिलवाना |
धोना | धुलाना | धुलवाना |
रोना | रुलाना | रुलवाना |
घूमना | घुमाना | घुमवाना |
पढ़ना | पढ़ाना | पढ़वाना |
देखना | दिखाना | दिखवाना |
खाना | खिलाना | खिलवाना |
(4) पूर्वकालिक क्रिया (Absolutive Verb) :-
जब किसी वाक्य में एक क्रिया के समाप्त होने पर कोई दूसरी क्रिया सम्पन्न होती है तो वहां प्रथम समाप्त क्रिया को पूर्वकालिक क्रिया कहा जाता है।
दूसरे शब्दों में-जब कर्ता एक क्रिया समाप्त कर उसी क्षण दूसरी क्रिया में प्रवृत्त होता है तब पहली क्रिया ‘पूर्वकालिक’ कहलाती है।
● पहचान के लिए जब किसी क्रिया के साथ ‘कर’ शब्दांश जुड़ा रहता है तो वह क्रिया पूर्वकालिक क्रिया मानी जाती है।
जैसे- पुजारी ने नहाकर पूजा की
राखी ने घर पहुँचकर फोन किया।
उपर्युक्त वाक्यों में पूजा की तथा फोन किया मुख्य क्रियाएँ हैं। इनसे पहले नहाकर, पहुँचकर क्रियाएँ हुई हैं। अतः ये पूर्वकालिक क्रियाएँ हैं।
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2. कर्म के आधार पर क्रिया के भेद :-
इस आधार पर क्रिया के निम्नलिखित दो भेद होते हैं –
- सकर्मक क्रिया(Transitive Verb)
- अकर्मक क्रिया(Intransitive Verb)
(1) सकर्मक क्रिया:-
जिस क्रिया के द्वारा कार्य का फल कर्त्ता पर न पड़कर कर्म पर पड़ता है वह सकर्मक क्रिया कहलाती है अथार्त कर्म का प्रयोग किये बिना वाक्य का पूर्ण भाव स्पष्ट नही होता है तो वहां प्रयुक्त क्रिया सकर्मक क्रिया मानी जाती है। जैसे –
- बच्चा पढ़ रहा है।
- उसमें लिखा था।
- किसान काटेंगे।
- हमने खरीदा है।
सकर्मक क्रिया के भेद
सकर्मक क्रिया के निम्नलिखित दो भेद होते हैं :
- अपूर्ण सकर्मक क्रिया
- पूर्ण सकर्मक क्रिया
(i) अपूर्ण सकर्मक क्रिया :-
जिस सकर्मक क्रिया के साथ कर्म के अलावा भी अन्य किसी पूरक शब्द की आवश्यकता बनी रहती है तो वह अपूर्ण सकर्मक क्रिया मानी जाती है। अपूर्ण सकर्मक क्रियाएं निम्न है – मानना, चुनना, समझना, बनाना।
- मैं तुम्हे मित्र मानता हूँ।
- वह मुझे होशियार समझता है।
- हमने राम को अध्यक्ष बनाया।
(ii) पूर्ण सकर्मक क्रिया :-
जिस सकर्मक क्रिया के साथ कर्म के अलावा अन्य किसी पूरक शब्द की आवश्यकता नही होती है वह पूर्ण सकर्मक क्रिया मानी जाती है। जैसे –
- वह पुस्तक पढ़ रहा है।
- बंदर फल खा रहा है।
- किसान फसल काट रहे है।
पूर्ण सकर्मक क्रिया के भेद :- इस क्रिया के दो भेद माने जाते है –
(i) एककर्मक क्रिया :- जिस सकर्मक क्रिया के साथ प्रायः एक ही कर्म का प्रयोग किया जाता है तो वह क्रिया एककर्मक क्रिया कहलाती है। जैसे –
- मैंने आम खरीदे।
- मैंने आप और केले खरीदे।
(ii) द्विकर्मक क्रिया :- जिस सकर्मक क्रिया के साथ दो कर्मों का प्रयोग किया जाता है तो वह क्रिया द्विकर्मक क्रिया कहलाती है। जैसे –
- राम श्याम को पाठ पढ़ाता है।
- पुत्र ने पिता को पत्र लिखा।
(2) अकर्मक क्रिया:-
जब किसी क्रिया के साथ कर्म की आवश्यकता नहीं पड़ती है अर्थात कर्म को लिखे बिना ही वाक्य का पूर्ण भाव स्पष्ट हो जाता है तो वहां प्रयुक्त क्रिया अकर्मक मानी जाती है। जैसे –
- बच्चा रो रहा है।
- कुत्ते भोंकते है।
- वह रातभर नही सोया।
अकर्मक क्रिया के भेद :- अकर्मक क्रिया के दो भेद माने जाते है।
(i) अपूर्ण अकर्मक क्रिया :- ऐसी अकर्मक क्रिया जिसके साथ वाक्य में किसी न किसी पूरक शब्द को लिखे जाने की आवश्यकता बनी रहती है तो वह क्रिया अपूर्ण अकर्मक क्रिया मानी जाती है। इसमें मुख्यतः होना, लगना व निकलना को शामिल किया जाता है। जैसे –
- बच्चा प्यासा है।
- वह ईमानदार लगा।
- वह एक अध्यापक था।
(ii) पूर्ण अकर्मक क्रिया :- जिस अकर्मक क्रिया के साथ अन्य किसी पूरक शब्द की आवश्यकता नही होती है एवं कर्त्ता व क्रिया में लिखे जाने के कारण वाक्य का पूर्ण भाव स्पष्ट हो जाता है तो वह क्रिया अकर्मक क्रिया मानी जाती है। जैसे –
- बच्चा सो रहा है।
- लता हँसती है।
- चोर भाग रहा है।
कुछ क्रियाएँ अकर्मक और सकर्मक दोनों होती है और प्रसंग अथवा अर्थ के अनुसार इनके भेद का निर्णय किया जाता है। जैसे-
अकर्मक | सकर्मक |
उसका सिर खुजलाता है। | वह अपना सिर खुजलाता है। |
बूँद-बूँद से घड़ा भरता है। | मैं घड़ा भरता हूँ। |
तुम्हारा जी ललचाता है। | ये चीजें तुम्हारा जी ललचाती हैं। |
जी घबराता है। | विपदा मुझे घबराती है। |
वह लजा रही है। | वह तुम्हें लजा रही है। |
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3. काल के आधार पर क्रिया के भेद :-
● काल के आधार पर क्रिया के मुख्यतः तीन भेद माने जाते है –
- भूतकालिक क्रिया
- वर्तमानकालिक क्रिया
- भविष्यकालिक क्रिया
(1) भूतकालिक क्रिया :- क्रिया के जिस रूप के द्वारा किसी कार्य को जारी समय से पहले होना पाया जाता है तो वह भूतकालिक क्रिया मानी जाती है। भूतकालिक क्रिया के 6 उपभेद माने जाते है –
(i) सामान्य भूतकालिक क्रिया :- वाक्य के अंत मे या/ये/यी/आ/ए/ई हो। जैसे –
- महेश जयपुर गया।
- उसने चाय पी।
(ii) आसन्न भूतकालिक क्रिया :- उपर्युक्त पहचान + चुका है/चुकी है / चुके है/ है/ हैं आदि जैसे –
- महेश जयपुर गया है।
- उसने चाय पी है।
(iii) पूर्ण भूतकालिक क्रिया :- उपर्युक्त पहचान + था/थे/थी / चुका था/चुके थे/चुकी थी जैसे –
- महेश जयपुर गया था।
- उसने चाय पी थी।
(iv) संदिग्ध भूतकालिक क्रिया :- उपर्युक्त पहचान + होगा/होगी/होंगे/चुका होगा/चुकी होगी/चुके होंगे। जैसे –
- महेश जयपुर गया होगा।
- उसने चाय पी होगी।
(v) अपूर्ण भूतकालिक क्रिया :- रहा था/रहे थे/रही थी/ता था/ ती थी/ ते थे। जैसे –
- वर्षा हो रही थी।
- बच्चे सो रहे थे।
(vi) हेतुहेतुमद भूतकालिक क्रिया :- भूतकाल की शर्त होती है। जैसे –
- यदि तुम मेहनत करते तो अवश्य सफल हो जाते।
- अगर वर्षा होती तो फसल होती।
(2) वर्तमानकालिक क्रिया :- क्रिया के जिस रूप के द्वारा किसी कार्य का जारी समय का होना पाया जाता है तो वहाँ वर्तमानकालिक क्रिया मानी जाती है। जैसे –
- महेश पुस्तक पढ़ता है।
- बच्चे क्रिकेट खेल रहे है।
- वह खाना खा रहा होगा।
- राम अब तुम पुस्तक पढ़ो।
- कोई हमारी बात न सुनता हो।
(3) भविष्यकालिक क्रिया :- क्रिया के जिस रूप के द्वारा किसी कार्य का आने वाले समय मे होना पाया जाता है वहां भविष्यकालिक क्रिया मानी जाती है। जैसे –
- मैं घर जाऊंगा।
- आप हमारे घर आइएगा।
- आज वर्षा हो सकती है।
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